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अध्यात्मविचारणा इनमेंसे आजीवक परम्पराका इतिहास लम्बा होनेपर भी उसका स्वतंत्र कहा जा सके ऐसा साम्प्रदायिक साहित्य उपलब्ध नहीं है। उसके मन्तव्य तो मिलते हैं, पर वे खण्डित और इतर परम्पराओंके साहित्यमें संगृहीत रूपसे ही।' अतः यहाँ पर अवशिष्ट तीन परम्पराओंको मुख्य रखकर उनके मोक्षविषयक विचार जाननेका हम प्रयत्न करेंगे।
इस समय वैदिक परम्परामें समाविष्ट मुख्य दर्शन छः हैंन्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, पूर्वमीमांसा और उत्तरमीमांसा । पूर्वमीमांसा इस समय भले ही उपनिषद् आदि मोक्षवादी विचारों का आदर करती हो, पर मूलमें वह कर्ममीमांसा है और कर्मके फलके तौरपर स्वर्गसे इतर उच्च आदर्श या ध्येयका विचार नहीं करती। इसलिए मोक्षस्वरूपविषयक मान्यताएँ हमें मुख्यतः बाकीके पाँच दर्शनोंके साहित्यमें ही मिलती हैं।
प्रमेयतत्त्वके स्वरूपके विषयमें, और उसमें भी खास तौरपर आत्मतत्त्वके स्वरूपके विषयमें, जितना और जैसा विचारभेद उतना और वैसा ही विचारभेद मोक्षके स्वरूपके बारेमें भी फलित होनेका ही । इसी वजहसे हम एक ही वैदिक परम्परामें आत्मतत्त्वके स्वरूपके बारे में सर्वथा भिन्न-भिन्न और बहुत बार तो विरुद्ध प्रतीत हों ऐसी कल्पनाएँ देखते हैं। इतना ही नहीं, पर मात्र औपनिषद या ब्रह्मसूत्रजीवी शाखाओंकी मान्यताओं में भी मोक्षके स्वरूपकी कल्पनाएँ जुदी-जुदी देखते हैं।
वैदिक माने जानेवाले दर्शनोंकी जीवात्मा तथा परमात्माके स्वरूपकी मान्यताएँ उपयुक्त रूपसे भिन्न होनेपर भी उन सभी
१. देखो History and Doctrines of Ajivakas by A, L. Basham.