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ऐसी स्थितिमें पंडित श्री सुखलालजीको आत्म-परमात्मतत्त्व विषयपर व्याख्यान देनेकी प्रार्थना की गई। उन्होंने हमारी प्रार्थना स्वीकार कर हमें अनुगृहीत किया । पण्डितजीने अपने व्याख्यान इस प्रकार दिये थे
रविवार, ता० ९-१०-१९५५ : प्रात्मविचारणा सोमवार, ता. १०-१०-१९५५ : परमात्मा और मोक्ष विचारणा मंगलवार, ता० ११-१०. १९५५ : अध्यात्मसाधना
ये व्याख्यान गुजरात विद्यासभाके तत्कालीन अध्यक्ष माननीय श्री गणेश वासुदेव मावलंकरके सभापतित्वमें हुये थे।
गत वर्ष ये व्याख्यान 'अध्यात्मविचारणा' के नामसे ग्रन्थरूपसे प्रकाशित किये गये थे। इन व्याख्यानोंकी विशिष्टता पण्डित जीके सर्वसिद्धान्तसमन्वयबुद्धिसे किए गये स्वतंत्र निरूपणमें निहित है। केवल गुजरातके ही नहीं, भारतभरके दार्शनिक विद्वानोंमें पण्डितजीका सबहुमान स्थान है। इससे इतर प्रान्तोंके लोगोंका भी मन पण्डितजीके विचारों में अवगाहन करनेका सतत रहता है। इस बातको ध्यानमें रखकर इन व्याख्यानोंका हिन्दी अनुवाद भी प्रकाशित करनेका निर्णय किया गया और श्री शांतिलाल मणिलाल B. A. द्वारा हिन्दी अनुवाद करा कर इसी 'शाह पोपटलाल हेमचन्द अध्यात्म-व्याख्यानमाला' के अंक ३ तथा श्री भो० जे० अध्ययन-संशोधन विद्याभवनकी संशोधन-प्रन्थमालाके ५५ व पुष्पके रूपमें वह प्रकाशित किया जाता है।
ता० १ दिसम्बर, १९५७) रसिकलाल छोटालाल परीख पो० बॉ० नं० २३, भद्र,
अध्यक्ष
श्रीभोलाभाई जेशिंगभाई अध्ययन-संशोधन अहमदाबाद-१ ) विद्याभवन, गुजरात विद्यासभा