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निवेदन
स्वर्गीय सेठ श्री पोपटलाल हेमचन्दके सुपुत्र शाह चिमनलाल पोपटलालने अपने पिताजीके संस्मरणार्थ १६४६ में गुजरात विद्यासभाके श्री भो० जे० विद्याभवनको जिन शर्तोंपर निधि प्रदान की उसमें मुख्य शर्त यह थी कि 'आत्म-परमात्मतत्त्व के विषयपर तज्ज्ञ विद्वानों एवं विचारकोंद्वारा शक्य हो वहाँतक स्वभाषा गुजरातोमें अथवा हिन्दीमें अथवा अंग्रेज़ीमें व्याख्यान दिलवाने । उन व्याख्यानोंमें जैनदृष्टिसे आत्म परमात्मतत्त्वके विषयको इस व्याख्यानमालाके विषयोंमें, एक मुख्य विषयके तौरपर स्थान देना।' ___ इस उद्देश्यको कार्यान्वित करनेके लिए 'श्री पोपटलाल हेमचन्द अध्यात्म-व्याख्यानमाला' की योजना सोची गई और उसका प्रारम्भ सुप्रसिद्ध तस्वचिन्तक और अध्यात्मवादी प्रा० आर० डी० रानडेके हाथों ता. ६ अगस्त, १९४७ के दिन हुा । यहाँपर तथा अन्यत्र इसी विषय पर दिए गये उनके व्याख्यानोंका संग्रहग्रन्थ 'The Conception of Spiritual Life in Mahatma Gandhi and the Hindi Saints' ता० २-१०-१९५६ (गाँधीजयन्ती ) के दिन प्रकाशित हुना है।
इसके पश्चात् गुजरातसे बाहरके दूसरे विद्वान् व्याख्याताओंको ब्याख्यान देने के लिए निमंत्रण भेजे गये, जिनमें कलकत्ता विश्वविद्यालयके संस्कृत विभागके भूतपूर्व अध्यक्ष डॉ. सातकोड़ी मुकर्जी भी एक थे। उन्होंने व्याख्यान देनेका स्वीकार भी किया था, किन्तु स्वास्थ्यकी प्रतिकूलताके कारण वे नहीं पा सके ।