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अध्यात्मविचारणा ली। पर प्राचीन वास्तविक प्रधानाद्वैतवादी भी इस समय हाथपर हाथ धरकर चुपचाप बैठे तो नहीं थे। उन्होंने चेतनाद्वैत अथवा चेतनबहुत्व भिन्न न मानकर प्रधानाद्वैतकी प्रमुख मान्यताके ऊपर ही पुनर्जन्मकी भाँति मोक्षवाद भी घटाया और अपने इस मन्तव्यके अनुकूल शास्त्रवाक्यके अर्थ भी किये। ___ उपनिषदोंके आधारपर रचित ब्रह्मसूत्रके कई व्याख्याकार शंकराचार्यसे पहले भी हुए थे । वे तत्त्वाद्वैतवादकी प्रथम सांख्यभूमिकाका अवलम्बन लेकर एकमात्र प्रधानतत्त्वको मानते थे और उससे भिन्न चेतनतत्त्व माने बिना ही मोक्ष आदि विषयोंकी उपपत्ति भी करते थे। १. मोक्षो रजस्तमोऽभावाद् बलवत्कर्मसंक्षयात् ।
वियोगः कर्मसंयोगैरपुनर्भव उच्यते ॥ १४२ ॥ xxx एतत्तदेकमयनं मुक्तैर्मोक्षस्य दर्शितम् । तत्त्वस्मृतिबलं येन गता न पुनरागताः ।। १५० ।। श्रयनं पुनराख्यातमतद्योगस्य योगिभिः । संख्यातधर्मैः सांख्यैश्च मुक्तेर्मोक्षस्य चायनम् ॥ १५१ ।।
तस्मिंश्चरमसंन्यासे सम्लाः सर्ववेदनाः । असंज्ञाज्ञानविज्ञाना निवृत्तिं यान्त्यशेषतः ॥ १५४ ।। अतः परं ब्रह्मभूतो भूतात्मा नोपलभ्यते । निःसृतः सर्वभावेभ्यश्चिह्न यस्य न विद्यते ॥ १५५ ।। गतिब्रह्मविदां ब्रह्म तच्चाक्षरमलक्षणम् । ज्ञानं ब्रह्मविदां चात्र नाशस्तज्ज्ञातुमर्हति ।। १५६ ॥
-चरकसंहितागत शारीरस्थान, कतिधापुरुषीय
प्रकरण, अ. १