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________________ अध्यात्मविचारणा अपने Religion and Philosophy of Vedas and Upanishads नामक ग्रन्थके दूसरे भागके परिशिष्ट G में ऐसे अनेक मतभेदोंके बारेमें ऊहापोह किया है और उनमेंसे किसी एकको अबाधित नहीं माना । इतने दूरके अँधेरे भूतकालमेंसे ऐसे प्रश्नोंके बारेमें सुनिश्चित एवं सर्वसम्मत सत्य छाँटकर निकालना किसीके लिए भी शक्य नहीं है। इन और ऐसे दूसरे कारणोंसे मैं यहाँपर उतने भूतकालकी गहराई में न जाकर ऐसे समयसे ही चर्चाकी शुरुआत करूँगा जिसमें आत्मवादकी स्थापनाके स्पष्ट उल्लेख और वर्णन मिलते हों। ___ पाणिनिके सूत्र ईसवीपूर्व पाँचवी शतीसे अर्वाचीन नहीं हैं। उनमें जो 'आस्तिक' व 'नास्तिक' शब्द आते हैं और उनका जो परम्परागत पाणिनिविवक्षित अर्थ काशिकाकार वामन जयादित्यने किया है उसे देखते हुए इतना तो प्रतीत होता है कि उस समय आत्मवाद एवं पुनर्जन्म या परलोककी बात बिलकुल रूढ़ और प्रतिष्ठित हो चुकी थी, और जो ऐसी मान्यतामें विश्वास न रखते हों वे नास्तिक कहलाते थे। आगे चलकर 'नास्तिक' पद तो ऐसा प्रचलित हो गया कि अपनी अत्यन्त श्रद्धेय एवं मान्य वस्तु या दृष्टिमें जो श्रद्धा न रखता हो अथवा उसका विरोध करता हो वह भी नास्तिक समझा और कहा जाने १. India As Known to Panini, P. 475 २. अस्तिनास्तिदिष्टं मतिः । _ -पाणिनि अष्टाध्यायी ४. ४.६० ३. न च मतिसत्तामात्रे प्रत्यय इष्यते । कस्तर्हि ? परलोकोऽस्तीति यस्य मतिरस्ति स श्रास्तिकः । तद्विपरीतो नास्तिकः। -काशिकावृत्ति ४. ४. ६०
SR No.023488
Book TitleAdhyatma Vicharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghvi, Shantilal Manilal Shastracharya
PublisherGujarat Vidyasabha
Publication Year1958
Total Pages158
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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