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प्रवेश
निगरानीमें उच्च संशोधनकार्य भी करवाती है। इसलिए यदि हम अपनी प्राचीन आध्यात्मिक विरासतको आख़री न मानकर उसमें नये संशोधनोंद्वारा वृद्धि करके ऋषिऋण अदा करना चाहें तो यह एक सपूतका ही कार्य समझा जायगा।
१. देखो-Mcdougall : Religion and the Sciences of the Life में प्रकाशित व्याख्यान Psychical Research As A Study, p. 64-81
२. ऋषिऋण, देवऋण और पितृऋणके लिए देखो तैत्तिरीय संहिता ६. ३.१०. ५., तथा
ऋणानि त्रीण्यपाकृत्य मनो मोक्षे निवेशयेत् । . अनपाकृत्य मोदं तु सेवमानो व्रजत्यधः ॥
-मनुस्मृति ६.३५
मा
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