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________________ प्रवेश मनुष्यको स्वभावसे ही जिज्ञासा एवं उसे सन्तुष्ट करनेकी पुरुषार्थशक्ति इतनी अधिक और अपरिमित मात्रामें मिली है कि उसके सामने जब कोई नया विषय उपस्थित होता है तब, चाहे वह विषय कितना ही नया, सूक्ष्म अथवा गूढ़ क्यों न हो, वह अपने जीवन और सुख-सुविधाकी परवाह किये बिना उसकी खोज व गहरे अध्ययनके पीछे हाथ धोकर पड़ता है और अन्त में अपनी सतत एवं अडिग धुनद्वारा सनातन मूल्यवाला कुछ नकुछ नया चिन्तन अथवा संशोधन मानवजातिको दे जाता है। मनुष्यजातिने अबतक जो ज्ञान-थाती सुरक्षित रखी है वह इस बातकी गवाही देती है। . उपलब्ध प्राचीनतम साहित्यिक विरासतमें वेद एवं अवेस्ताके कुछ भागोंका स्थान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। उनमें हमें आध्यात्मिक जिज्ञासा और शोधके सूचक कई गम्भीर उद्गार मिलते हैं । उपनिषद्, जैन आगम व बौद्ध पिटकोंमें तो आध्यात्मिक जिज्ञासाविषयक विचारणा ही मुख्य रूपसे देखी जाती है । यद्यपि उपनिषदों, आगमों तथा पिटकों के प्राचीन भाग, जिनमें विविध प्रकारसे आध्यात्मिक जिज्ञासा व विचारणा हुई है, वेद और अवेस्ताके प्राचीन भागोंकी अपेक्षा अर्वाचीन समझे जाते हैं, फिर भी ऐसा समझ लेना भ्रान्त ही होगा कि इन उपनिषदों, आगमों व पिटकों में जो आध्यात्मिक चिन्तन है वह उन-उन ग्रन्थोंके जितना ही प्राचीन है । सच बात तो यह है कि इस अध्यात्म जिज्ञासा और विचारणाका स्रोत किसी सुदूरवर्ती भूतकालमेंसे बहता आया है और उपलब्ध होनेवाले उन-उन ग्रन्थों में किसी समय लिपिबद्ध होकर आजतक सुरक्षित रहा है। भारतभूमिकी गोदमें जन्म लेनेवालेको अपनी जनमधूंटीके साथ ही ऐसा कोई संस्कार मिलता है जिससे उसके मानसिक निर्माणमें आध्यात्मिक समझे जानेवाले वियोंकी
SR No.023488
Book TitleAdhyatma Vicharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghvi, Shantilal Manilal Shastracharya
PublisherGujarat Vidyasabha
Publication Year1958
Total Pages158
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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