________________
अध्यात्मसाधना
परिणामस्वरूप प्रकृति अर्थात् जड़से भिन्न चेतन तत्त्वका जब अपरोक्ष साक्षात्कार होता है तभी वह पक्क विद्याकी श्रेणी में आता है। इसीको सांख्य-योग शास्त्र में विवेकख्याति', बौद्ध ग्रन्थों में प्रज्ञा तथा जैन-शास्त्रमें केवलज्ञान कहते हैं।
आध्यात्मिक अविद्याके अस्तित्वके समय क्लेशोंका अस्तित्व अनिवार्यतः होता है यह सच है, किन्तु राग-द्वेष आदि क्लेश जीवनमें हमेशा एकसे अनुभवमें नहीं आते। इस दृष्टिसे योगशास्त्रमें क्लेशोंकी चार अवस्थाएँ मानी गई हैं -(१) जो क्लेश अपनी वृत्ति प्रकट कर रहा हो वह उसकी उदार-अवस्था है। उदाहरणार्थ, राग क्लेश कामवृत्ति अथवा लोभके रूपमें आविर्भूत होनेपर उदार अर्थात् उदयमान कहलाता है। (२) प्रतिपक्षी क्लेशके बलके कारण जो क्लेश अमुक समयतक दबा रहता है वह विच्छिन्न कहा जाता है । उदाहरणार्थ, जब क्रोध भभकता हो तब राग दबा रहता है। (३) आध्यात्मिक चिन्तन-मननके कारण अथवा तप-स्वाध्याय आदि क्रियायोगके अभ्यासके कारण क्लेशोंका बल कम होने पर जो अवस्था होती है उसे तनु-अवस्था कहते हैं । (४) जो क्लेश अन्तर्मनमें बीज अथवा संस्कारके रूपमें रहते हों, परन्तु जिनका कार्य अनुभवमें न आता हो वे प्रसुप्त कहलाते हैं।
यद्यप्यनादिविपर्ययवासना तथाऽपि तत्त्वज्ञानवासनया तत्त्वविषयसाक्षात्कारमादधत्याऽऽदिमत्याऽपि शक्या समुच्छेत्तुम् । तत्त्वपक्षपातो हि धियां स्वभावः । यदाहु ह्या अपि""।
१. विवेकख्यातिरविप्लवा हानोपायः। -योगसूत्र २. २६ २. अविद्या क्षेत्रमुत्तरेषां प्रसुप्ततनुविच्छिन्नोदाराणाम् ।
-योगसूत्र २. ४ तथा भाष्य