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________________ अध्यात्मसाधना ११५ है। यही प्रतीति क्लेशोंके संस्कार-बीजको दग्ध करनेमें समर्थ होती है। योगशास्त्र में प्रयत्नसाध्य समाधि सिद्ध करने के लिए पाँच अंग आवश्यक माने गये हैं-श्रद्धा, वीर्य, स्मृति, समाधि और प्रज्ञा' । इन पाँच अंगोंके बलाबलके विषयमें योगशास्त्रमें कोई विशेष चर्चा नहीं है, किन्तु विशुद्धिमार्गमें इसकी विशेष चर्चा की गई है। उसमें अर्पणासमाधिकी सिद्धिके लिए दस प्रकारके कौशलका उपयोगी तथा रसप्रद वर्णन है । इनमेंसे दूसरे प्रकारके कौशलके रूपमें उक्त पाँच अंगोंके बलाबलकी चर्चा करके उनमें समत्व स्थापित करने का निर्देश किया गया है। बुद्धघोषने लिखा है कि श्रद्धा, वीर्य आदि अंग समाधिके लिए आवश्यक हैं सही, पर उनमें असमानता होनेपर वे लाभदायक नहीं होते। श्रद्धा अधिक बलवती हो तो वीर्य आदि अंग अपना-अपना काम ठीक ढंगसे नहीं कर सकते। उसने इस बातको एक दृष्टान्त देकर समझाया है कि वक्कली नामक एक स्थविर बहुत बीमार था । बुद्धके प्रति उसकी बलवती श्रद्धा होनेके कारण वह उनके दर्शनके लिए तरसता था, पर चलकर जानेमें अशक्त था। बुद्धने एक बार खुद ही आकर उससे पूछा कि तुझे तेरा शरीर साथ नहीं देता, तो फिर तू मेरे दर्शनके लिए क्यों तरसता है ? मेरा रूपदर्शन मेरा वास्तविक दर्शन नहीं है; मेरे वक्तव्यका हार्द समझना ही मेरा वास्तविक दर्शन है। यों कहकर बुद्धने उस स्थविरको धर्मदर्शनकी ओर प्रेरित किया तथा उसकी प्रज्ञाको उत्तेजित कर श्रद्धा व प्रज्ञाका समत्व स्थापित किया। श्रद्धा १. श्रद्धावीर्यस्मृतिसमाधिप्रज्ञापूर्वक इतरेषाम् । -योगदर्शन १. २० २. दस प्रकारके कौशलोंके लिए देखो विसुद्धिमग्ग ४. ४२-४६
SR No.023488
Book TitleAdhyatma Vicharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghvi, Shantilal Manilal Shastracharya
PublisherGujarat Vidyasabha
Publication Year1958
Total Pages158
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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