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________________ ११० अध्यात्मविचारणा बतलाई गई हैं उसी प्रकार तत्त्वार्थसूत्रमें भी सकषाय और अकषाय इन दो प्रकारोंकी प्रवृत्तियोंका वर्णन किया गया है। जिस प्रकार क्लिष्ट वृत्तिमें अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष और अभिनिवेश इन पाँच क्लेशोंका समावेश किया गया है, उसी प्रकार सकषाय प्रवृत्तिमें मिथ्यादर्शन, अविरति, प्रमाद और कषायका समावेश होता है । मिथ्यादर्शन अविद्या है तथा अविरतिसे कषायतकके तीन दोष वस्तुतः अस्मितासे अभिनिवेशतकके क्लेशोंका ही भिन्न प्रकारका वर्गीकरण है । इस प्रकार योगशास्त्रकी क्लिष्ट वृत्ति तथा तत्त्वार्थ सूत्रका सकषाय योग अर्थात् आस्रव ये दोनों वस्तुतः एक ही हैं। योगशास्त्रमें क्लिष्ट-अक्लिष्ट वृत्तियोंके निरोधको 'योग' कहा है तो तत्त्वार्थसूत्रमें सकषाय अकषाय प्रवृत्तिके निरोधको 'संवर' कहा है । जो वस्तु योगशास्त्रमें 'योग' शब्दसे कही गई है वही तत्त्वार्थसूत्रमें 'संवर' शब्दसे बताई गई है। जिस प्रकार योग क्रमशः विकसित होता हुआ सम्प्रज्ञात दशामेंसे गुजरकर अन्तमें चित्तविलयमें पर्यवसित होता है उसी प्रकार संवर भी सकषाय प्रवृत्तिके निरोधके बाद अकषाय प्रवृत्तिके निरोधमें पर्यवसित होकर अन्तमें विदेहमुक्ति होनेपर समाप्त होता है। ___ योगशास्त्रमें सम्प्रज्ञात योगकी चार भूमिकाओंको क्रमशः सिद्ध करने के कई उपाय बताये हैं। इसी प्रकार असम्प्रज्ञात योग प्राप्तकर उसे पराकाष्ठापर पहुँचाने के उपायोंका भी निर्देश किया गया है। इन सभी उपायोंका संक्षिप्त निर्देश योगशास्त्रके प्रथम पादमें है। उनमेंसे मुख्य ये हैं-(१) अभ्यास, (२) वैराग्य, (३) प्रणिधान अर्थात् जप, (४) मैत्री आदि भावनाएँ, (५) १. सकषायाकषाययोः साम्परायिकर्यापथयोः। -तत्त्वार्थसूत्र ६.५ २. तत्त्वार्थ सूत्र ८.१ ३. प्रास्त्रवनिरोधः संवरः। -तत्त्वार्थसूत्र १.१
SR No.023488
Book TitleAdhyatma Vicharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghvi, Shantilal Manilal Shastracharya
PublisherGujarat Vidyasabha
Publication Year1958
Total Pages158
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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