SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्यात्मविचारणा आध्यात्मिक साधनाका विस्तार ही हानोपाय अथवा मोक्षमार्ग नामक तृतीय सत्य है । साधनाका यह विस्तार एकरूप नहीं है। देश-काल, परम्परागत संस्कार, रुचि एवं अधिकार आदिके वैविध्यके कारण साधनाप्रणालीमें भिन्नता तथा विविधता अनिवार्य है। ध्यान, जप, तप, यज्ञ आदिकी जिनमें प्रधानता हो ऐसी साधनाओंको मुख्य साधनाके अंगरूप मानकर गीताने मुख्य साधनाके तौरपर ज्ञान, भक्ति तथा कर्मप्रधान साधनाका सविस्तर एवं सुन्दर विवेचन किया है जो समग्र वैदिक परम्पराओंकी साधनाओंका एक प्रकारका संक्षेपमात्र है। तथागत बुद्धके द्वारा उपदिष्ट मध्यमप्रतिपदारूप जिस आर्य-अष्टांगिकमार्गका' पिटकोंमें विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है उसका सुव्यवस्थित संक्षिप्त निरूपण शील, समाधि एवं प्रज्ञाके रूप में विशुद्धिमार्गमें बुद्धघोषने किया है। पार्श्वनाथ आदि निर्ग्रन्थोंद्वारा उपदिष्ट मोक्षमार्गका संक्षेप तत्त्वार्थसूत्र (१.१) में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एवं सम्यक्चारित्रके रूपमें किया गया है । इस प्रकार ज्ञान, भक्ति और कर्म; शील, समाधि और प्रज्ञाः सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र-इन तीनों त्रिकोंमें शब्दका एवं वाच्यार्थका भेद होते हुए भी इनकी अन्तरात्मा या तात्पर्यार्थ एक ही है, ऐसी प्रतीति असाम्प्रदायिक मानसको हुए बिना नहीं रहती। पातञ्जल योगशास्त्रमें वर्णित साधनाका कुछ विस्तारसे उल्लेख कर उसके साथ गीता, विशुद्धिमार्ग तथा तत्त्वार्थसूत्रमें वर्णित साधनाकी यथासम्भव तुलना यहाँ की जाती है जिससे उपर्युक्त कथनकी यथार्थता समझमें आ सकेगी। १. आर्य-अष्टांगिकमार्ग–सम्यग्दृष्टि, सम्यक्संकल्प, सम्यगवचन, सम्यककर्मान्त, सम्यगाजीव, सम्यगव्यायाम, सम्यकस्मृति और सम्यकसमाधि। -मज्झिमनिकायगत सम्मादितिसुत्तन्त ६
SR No.023488
Book TitleAdhyatma Vicharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghvi, Shantilal Manilal Shastracharya
PublisherGujarat Vidyasabha
Publication Year1958
Total Pages158
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy