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________________ अध्यात्मसाधना दाराणाम्' (२-४) तथा अक्षपादके सूत्र दोनों एक ही बात कहते हैं। उपनिषद्', गीता तथा ब्रह्मसूत्रमें भी मूल दोष अथवा संसारके बीजके तौरपर अविद्या ही मानी गई है। तथागत बुद्धने संसारकी जिस कारणमालाका निर्देश किया है उसमें मुख्य अविद्या ही है। अविद्या हो तभी तृष्णा आदि दोष उत्पन्न होते हैं। जैनपरम्परामें भी यही बात कही गई है। उसमें संसारके कारणके रूप में मुख्य दो वस्तुएँ बताई गई हैं-एक तो दर्शनमोह और दूसरा चारित्रमोह । अन्य परम्पराओंमें जो वस्तु अविद्या, विपर्यय, मोह अथवा अज्ञानके नामसे बताई गई है वह वस्तु जैनपरम्परामें दर्शनमोह अथवा मिथ्यादर्शनके नामसे बताई गई है । इतर परम्पराओंमें जो अन्य क्लेश अथवा दोष अस्मिता, तत्त्रैराश्यं रागद्वेषमोहान्तरभावात् । -न्यायसूत्र ४. १. ३ तेषां मोहः पापीयानामूढत्येतरोत्पत्तेः। - , ४. १.६ इन न्यायसूत्रोंका भाष्य भी देखना चाहिये । १. अविद्यायामन्तरे वर्तमानाः स्वयं धीराः पण्डितंमन्यमानाः । दन्द्रम्यमाणाः परियन्ति मूढ़ा अन्धेनैव नीयमाना यथाऽन्धाः ॥ -कठोपनिषद् १. २.५ २. अज्ञानेनावृतं ज्ञानं तेन मुह्यन्ति जन्तवः । ज्ञानेन तु तदज्ञानं येषां नाशितमात्मनः॥ xxx तेषामादित्यवज्ज्ञानं प्रकाशयति तत्परम् ॥ -भगवद्गीता ५. १५-१६ ३. मज्झिमनिकाय-महातपहासंखयसुत्त ३८ । ४. तस्वार्थसूत्र ८.१
SR No.023488
Book TitleAdhyatma Vicharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghvi, Shantilal Manilal Shastracharya
PublisherGujarat Vidyasabha
Publication Year1958
Total Pages158
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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