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________________ ६५ 1 तथागत बुद्धने इन चार सत्योंको आर्यसत्य कहा है । ये आर्यसत्य दुःख (हेय), समुदय (हेयहेतु), निरोध (हान) तथा मध्यमप्रतिपदा अथवा निरोधमार्ग (हानोपाय) के नामसे बौद्ध परम्परा में प्रसिद्ध हैं ।' यहाँ सत्यका अर्थ है जिसमें अनुभवका बाध न हो । सूक्ष्म विवेकपूर्वक अपने जीवनका विचार करनेवाला तथा उसका पूरी सचाई के साथ अनुसरण करनेवाला साधक किसी भी देश, काल अथवा जातिका क्यों न हो, पर इन सत्योंके विषय में उसका अनुभव एक-सा ही होगा । इसी दृष्टिसे बुद्धने इन्हें सत्य कहा है और वह भी आर्य सत्य । आर्य अर्थात् देश, काल अथवा जातिके मर्यादित बंधनों से मुक्त होकर आध्यात्मिक साधना करने वाला पुरुष । धना जैनपरम्परा के आगम आदि प्राचीन प्राकृत ग्रन्थों का सारसर्वस्व है वाचक उमास्वातिका तत्त्वार्थाधिगमसूत्र जो प्रत्येक जैन फिरक़को एक जैसा मान्य है । उसमें इन्हीं चार सत्योंका बन्ध, आस्राव, मोक्ष तथा संवर- इन चार नामोंसे निरूपण किया गया है । बन्ध अर्थात् शुद्ध चैतन्यका बन्धन या अज्ञान - राग-द्वेष आदि दोषोंके परिणामरूप दुःख यानी हेय । श्रस्रव अर्थात् शुद्ध चैतन्यको बाँधनेवाले अथवा उसे लिप्त करनेवाले दोष यानी हेयहेतु अथवा समुदय । मोक्ष यानी बन्धन से मुक्ति अर्थात् हान अथवा निरोध । संवर यानी मोक्षमार्ग अर्थात् हानोपाय अथवा निरोधमार्ग | इस प्रकार सामान्यतया हम देख सकते हैं कि समस्त आध्यात्मिक परम्पराओंने अपनी साधनाके मूलभूत सिद्धान्तोंके तौर पर चार सत्य स्वीकार किये हैं | १. मज्झिमनिकाय भयभैरवमुत्त ४ । ·२. तत्त्वार्थसूत्र १. ४ ।
SR No.023488
Book TitleAdhyatma Vicharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghvi, Shantilal Manilal Shastracharya
PublisherGujarat Vidyasabha
Publication Year1958
Total Pages158
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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