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अध्यात्मसाधना..
इसीलिये चिकित्साशास्त्र चार मुख्य सिद्धान्तोंके आधारपर प्रवृत्त हुआ है'-(१) अनुभवमें आनेवाला शारीरिक-मानसिक दुःख हेय है, अर्थात् इसका निवारण शक्य है; (२) यह दुःख बिना कारण कभी पैदा नहीं होता, अतः हेयका हेतु भी है; (३) इस कारणको दूर करने के उपाय भी हैं; और (४) इन उपायोंका यथावत् अवलम्बन करनेसे दुःख या रोग दूर होकर उसका स्थान सुख या स्वास्थ्य अर्थात् हान अवश्य लेता है।
चिकित्साशास्त्रकी पद्धतिके अनुसार ही आध्यात्मिक पुरुषोंने आध्यात्मिक जीवनसे सम्बद्ध चार मूल सिद्धान्त निश्चित किये हैं। वे ये हैं-(१) आध्यात्मिक दुःख अर्थात् शुद्धचैतन्यका बन्धन अर्थात् अपूर्णता, (२) इसका मुख्य कारण अविद्या या अज्ञान, (३) अज्ञानको दूर करनेके लिए सम्यग्ज्ञान आदि उपायोंका अनुष्ठान, और (४) आध्यात्मिक बन्धनसे मुक्ति अथवा पूर्णताकी सिद्धि ।
ऐसी कोई आध्यात्मिक साधना नहीं है जो उपर्युक्त चार सिद्धान्तोंको अस्वीकार कर चलती हो, फिर भले ही उनके नाम भिन्न-भिन्न परम्पराओंमें भिन्न-भिन्न मिलते हों। वस्तुतः इन चार सिद्धान्तोंके आधारपर ही आध्यात्मिक पुरुष विचार और व्यवहार करते हैं अथवा उपदेश देते हैं।
नेन्द्रियाणि न चैवार्थाः सुखदुःखस्य हेतवः । हेतुस्तु सुखदुःखस्य योगो दृष्टश्चतुर्विधः ॥
-चरकसंहिता, शारीरस्थान अ० १ श्लो० १२८-३० १. यथा चिकित्साशास्त्रं चतुव्यूह रोगो रोगहेतुः श्रारोग्यं भैषज्यमिति । एवमिदमपि शास्त्रं चतुर्थो हमेव । तद्यथा-संसारः संसारहेतु: मोक्षो मोक्षोपाय इति ।
-योगदर्शनभाष्य २. १५