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________________ ६२ अध्यात्मविचारणा होता तो मौलिक एकता कदापि सुरक्षित रह न पाती। यह मौलिक एकता क्या है, इसे हम पहले देखें और इसकी नींवपर चलनेवाली साधना-परम्पराएँ किन बलों व मानसिक वृत्तियोंके कारण एक दूसरीसे अलग-सी जान पड़ती हैं, इसका भी क्रमशः विचार करें। ___ शारीरिक तथा मानसिक वेदनाओंका लम्बा अनुभव मनुष्यजातिके पास था। कुछ समझदार और विचक्षण पुरुष यथामति इनके कारणोंकी खोज भी कर रहे थे। उन्होंने इन बाधाओंको दूर करने के उपाय भी ढूंढ़ निकाले थे, और नये नये उपाय खोजे भी जा रहे थे। इस प्रकारके विशिष्ट अनुभवोंकी विरासतवाली मानवजातिमें जब आध्यात्मिक अन्तश्चेतना जागृत होती है तब स्वाभाविकतया इस प्रकारकी अन्तवृत्तिवाले विशिष्ट व्यक्ति ही आध्यात्मिक जीवनमें भौतिक तथा स्थूल जीवनमें प्राप्त अनुभवोंका उपयोग करते हैं और इसी पद्धतिको काममें लेकर आध्यात्मिक दुःख, उसका कारण, उसे दूर करनेके उपाय आदिके बारेमें विचार एवं चिन्तन करते हैं तथा इस विचार एवं चिन्तनके अनुसार आचरण कर उसकी यथार्थताकी जाँच भी करते हैं। हुआ भी ऐसा ही। चिकित्साशास्त्र में शारीरिक व मानसिक दुःखके कारणके तौरपर जीवन कैसे जीना और इस तरह जीनेके लिए परिस्थितिकी किस प्रकार आयोजना करनी इसका अज्ञान ही मुख्यरूपसे बताया गया है। इस प्रज्ञापराधको दूर करने के उपायोंमें मुख्य स्थान है जीवन जीनेकी कलाके सम्यग्ज्ञानका'। १. मिथ्यातिहीनयोगेभ्यो यो व्याधिरुपजायते । शब्दादीनां स विज्ञेयो व्याधिरैन्द्रियको बुधैः ।। वेदनानामसात्म्यानामित्येते हेतवः स्मृताः । . ' सुखहेतुर्मतस्त्वेकः समयोगः . सुदुर्लभः ।।
SR No.023488
Book TitleAdhyatma Vicharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghvi, Shantilal Manilal Shastracharya
PublisherGujarat Vidyasabha
Publication Year1958
Total Pages158
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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