SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्यात्मसाधना अब हम इस बातका विचार करेंगे कि आध्यात्मिक साधनाकी भिन्न-भिन्न प्रणालियों एवं तत्त्वनिरूपणमें भेद होते हुए भी आध्यात्मिक साधनाओंका मूलभूत मन्तव्य किस प्रकार एकरूप ही है। __किसी अज्ञात क्षणमें एकाध विशिष्ट व्यक्तिमें भौतिकता-विरोधी शुद्ध आध्यात्मिक वृत्ति उदित हुई। इसके साथ ही उसमें आध्यात्मिक जीवनकी कुछ भी झलक प्रगट हुई । ऐसे जीवनको साकार करनेकी प्रबल उत्कण्ठाने उसे आदर्श जीवनके साधक पुरुषार्थकी ओर प्रेरित किया। यहींसे आध्यात्मिक साधना शुरू हुई। वह वैयक्तिक साधना धीरे-धीरे छोटे-मोटे क्षेत्रों में फैली। बढ़ते-बढ़ते इसने भिन्न-भिन्न दिखाई देनेवाले अनेक स्वरूप और कभी-कभी तो परस्पर विरुद्ध दिखाई दे ऐसे स्वरूप भी धारण किये। ये स्वरूप अनेक प्रकारकी साम्प्रदायिक साधनाओंके रूपमें भारतीय साहित्यमें उल्लिखित हैं। इनमेंसे अनेक तो आज भी जीवित धर्म-परम्पराओंमें दृष्टिगोचर भी होते हैं। ऐसा होनेपर भी ऐसी आध्यात्मिक साधनाओंकी विभिन्न परम्पराओंकी हमारे पास जो कमसे कम तीन-चार हजार वर्ष पुरानी विरासत और इतिहास है तथा इसके मूलमें जो एकता रही हुई है उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि परस्पर भिन्न और विरुद्ध दिखाई देनेवाली दार्शनिक एवं साधकोंकी परम्पराओंका आधार आध्यात्मिक जीवनकी सच्ची समझ तथा अनुभूति है। यदि ऐसा न
SR No.023488
Book TitleAdhyatma Vicharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghvi, Shantilal Manilal Shastracharya
PublisherGujarat Vidyasabha
Publication Year1958
Total Pages158
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy