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२ परिच्छेदः ]
प्राकृतपिङ्गलसूत्रम् ।
[ कीर्तिर्वाणी माला शाला हंसी माया जाया बाला । आर्द्रा भद्रा प्रेमा रामा ऋद्धिर्बुद्धिस्तासां नामानि ॥]
कीर्ति: १, वाणी २, माला ३, शाला ४, हंसी५, माया६, जाया७, बाला८, आर्द्रा९, भद्रा १०, प्रेमा ११, रामा १२, ऋद्धिः १३, बुद्धि:१४, [ इति ] तासामाख्या: ॥ विद्युन्मा - लाछन्दः ॥ अथैताश्चतुर्दशाप्युपजातय उद्यवणिकया स्फुटीकृत्य प्रदर्श्यन्ते ॥ १–İsi, SSI, ISI, SS (उ० ) SSI, SSI, ISI, ss (इ० ) ssI, SSI, ISI, SS (इ० ) ssI, SSI, ISI, SS (इ०) कीर्तिः ॥२- ssI, SSI, ISI, SS ( इ० ) IS!, SSI, ISI, ss ( उ० ) SSI, SSI, ISI, SS (इ० ) SSI, SSI, ISI, SS (इ० ) वाणी ॥३ – SI, SSI, ISI, SS (उ० ) ISI, SSI, ISI, SS ( उ० ) SSI, SSI, ISI, ss ( इ० ) ssI, ssi, ISI, SS (इ० ) माला ॥ ४ –ssi, sSI, ISI, SS ( इ० ) SSI, SSI, IS), SS (इ० ) ISI, SSI, ISI, SS (उ० ) SSI, SSI, ISI, SS (इ० ) शाला ॥५–ISI, SSI, ISI, SS (उ0) SSI, SSI, ISI, SS ( इ० ) ISI, SSI, ISI, SS ( उ० ) SSI, SSI, ISI, ss (इ० ) हंसी ॥६-ISI, SSI, ISI, SS ( 30 ) ISI, SSI, ISI, SS ( उ० ), ISI, SSI, ISI, SS (उ० ) SSI, SSI, ISI, SS (इ० ) माया ॥ ७ –SSI, SSI, ISI, Ss (इ० ) ISI, SSI, ISI, SS ( उ० ) ISI, SSI, ISI, SS ( उ० ) SSI, SSI, IsI, ss (इ० ) जाया ॥८- SSI, SSI, ISI, SS (इ० ) SSI, SSI, ISI, SS (इ० ) SSI, SSI, ISI, SS (इ० ) SIS, SSI, ISI, SS (उ० ) वाला ॥९ – ISI, SSI, ISI, SS (उ० ) ऽऽI, ऽऽI, ISI, ऽऽ (इ० ) SSI, SSI, ISI, ss (इ० ) ISI, SSI, ISI, SS ( उ० ) आर्द्रा ॥१० – SSI, SSI, ISI, SS (इ० ) ISI, SSI, ISI, SS (उ० ) SSI, SSI, ISI, SS (इ० ) ISI, SSI, ISI, SS (उ० ) भद्रा ॥११ – ISI, SSI, ISI,SS (उ० ) ISI, SSI, ISI, SS (उ०) SSI, SSI, ISI, SS (इ० ) ISI, SSI, ISI, SS (उ० ) प्रेमा ॥१२SSI, SSI, ISI, SS (इ० ) SSI, SSI, ISI, SS (इ० ) ISI, SSI, ISI, SS ( उ० ) ISI, SSI, ISI, SS (उ०) रामा ॥१३ – ISI, SSI, ISI, SS (उ० ) SSI, SSI, ISI, ss (इ० ) ISI, SSI, ISI, SS ( 30 ) ISI, SSI, ISI, SS (उ० ) ऋद्धिः ॥१४ – SSI, SSI, ISI, SS (इ०) ISI, SSI, ISI, SS ( उ० ) ISI, SSI, ISI, SS (उ० ) ISI, SSI, ISI, SS (उ० ) बुद्धिः ॥ एवमुपजातयः प्रदर्शितरूपानुसारेणाकरतो मत्कृतोदाहरणमञ्जरीतोsप्युदाहर्तव्या इत्यलमतिविस्तरेण ॥ एते च भेदा रुद्रवर्णप्रस्तारपिण्डसंख्यातः समधिका इति ध्येयम् ॥ उपजातयो निवृत्ताः ॥
अथैकादशाक्षरप्रस्तारे एव कानिचिद्वृत्तानि ग्रन्थान्तरादाकृष्य लिख्यन्ते । तत्र रथो -
द्धताछन्दः
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हारसंगतपयोधरा करं शङ्खयुक्तवलयेन संगतम् ।
बिभ्रती कनककुण्डलं मुदं कामिनीव कुरुते रथोद्धता ॥ १२३ ॥
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