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________________ भैन पत्रकारत्व वे पूरे परिवार, सभी रिश्तेदार के सबसे प्रिय पात्र थे। सबके हृदय में बसे हुए थे। कोई भी तकलीफ हो तो माणक सा. को कह दो उसका समाधान उनके पास था। हंमेशा सबको साथ लेकर चलने का आग्रह था । कभी भी कोई कार्य अकेले करने का निर्णय नहीं लिया। परिवार के आदर्श, पितृभक्त थे; स्वस्थ्य के प्रति सजग थे। खान-पान में बहुत ध्यान रखते थे । जीवनभर प्याज, लहसून एवं चाय का उपयोग नहीं किया। हमेशां सबसे स्वास्थ्य के प्रति सजग रहने का बोध कराते थे । एक घटना जिससे मुझे जीवन मे इस बड़ी शिक्षा मिली, उसका उल्लेख करता चाहता हुँ कि वर्ष १९९१ में माणक सा. रतलाम आएं। में उनके साथ स्टेशन गया। छोटा शहर है, अच्छी पहचान है । अतः मैंने रौब डालने के लिये कहा, फुफासा प्लेफॉर्म टिकट लेने की कोई जरुरत नहीं है। यहाँ सभी मुझे जानते हैं। जबकि उस वक्त प्लेटफॉर्म टिकट ५० पैसा का आता था। उन्होने कुछ नहीं कहा। बस कहा, प्लेटफोर्म टिकट खरीदों । फिर घर जाकर समजाया कि हम ५० पैसे कि चोरी कर रहे हैं उपर से रौब गोंत रहे है और इसे अपनी होंशियारी समझ रहे हैं। यह चोरी है, ऐसा कभी मत करता। उनकी यह बात मेरे जीवन का एक टर्निंग पोईन्ट था । उनकी छोटी सी बात ने इतना बड़ा संदेश दिया कि आज भी जब भी कहीं पार्किंग, प्लेटफॉर्म इत्यादि का शुल्क चुकाता हुँ तो अचानक उनकी याद आ जाती है | चरित्र निर्माण में उनकी इसी तरह की छोटी छोटी सी बाथों ने मेरा जीवन का तरीका ही बदल दिया। माणक सा० अल्पायु (५२ वर्ष में ) ०५ / फरवरी / २००१ में निधन हो गया। जब उनका निधन हुआ उसके पूर्व उन्हे १३ दिन तक बॉम्बे हॉस्पिटल में इलाज के लिये भर्ती रखा था तब वहाँ पर प्रतिदिन मुंबई जैसे शहर में जहाँ किसी के पास किसी के लिये समय नहीं है उनके लिये रोज शाम एवं सुबह मिलने को करीबन २०० आदमी नीचे बैठें रहते थे। हम इनहें समझाते थे फिर भी लोग घर नहीं जाते वहीं बेठे रहते थे। पहले में यह समझता था कि माणक सा. सिर्फ मेरे है व में ही उनके सबसे करबी हूँ और उनकी जिन्दगी २४
SR No.023469
Book TitleJain Patrakaratva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunvant Barvalia
PublisherVeer Tattva Prakashak Mandal
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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