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MMMMMन पत्रठारत्व
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M उद्देश्य एवं लक्ष्य पत्रिका समाज का दर्पण होती है। समाज के उत्थान में व्यक्तियों के विचार, जीवनशैली, परस्पर समन्वय की भावना एवं उनकी दृष्टि सहायक होती है। इन भावानाओं के पोषण में धर्म-दर्शन की विशेष भूमिका होती है। अतः जैन धर्म और दर्शन को, आगम के गूढ रहस्यों को समझने हेतु एवं संस्कृति, इतिहास, आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों का समाज में सम्प्रेषण हो - इस लक्ष्य को लेकर जिनवाणी पत्रिका प्रारम्भ की गई। आचार्य हस्तीमल जी महाराज श्रावकों में सामायिक और स्वाध्याय के प्रति सदैव बोध जगाते रहते थे। उनकी यह प्रेरणा ही इस पत्रिका के जन्म का बीज है। पत्रिका के प्रकाशन का यह उद्देश्य है कि संघ व समाज में स्वाध्याय के प्रति रुझान बढ़े।
विषय वस्तु एवं वैशिष्ट्य जिनवाणी पत्रिका के क्लेवर में समय के साथ वृद्धि हुई। पहले यह 24 फिर 32, उसके बाद 80 पृष्ठों में प्रकाशित होती रही। वर्तमान में यह 128 पृष्ठों में सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल, जयपुर से प्रकाशित होती है। इस पत्रिका में आगमवाणी, आचार्य एवं विद्वान संत-सतियों के प्रवचन, प्रासंगिक लेख, कविता, विचार, प्रेरक प्रसंग। नूतन-साहित्य, कथा, विशिष्ट आयोजन - कार्यक्रमों की रिपोर्ताज, जैन समाज में चल रही गतिविधियों के समाचार, श्रद्धांजलि आदि जानकारियाँ उपलब्ध रहती हैं। इसके अतिरिक्त बाल स्तम्भ, नारी स्तम्भ, युवा स्तम्भ और अंग्रेजी स्तम्भ में समाज के प्रत्येक व्यक्ति से जुड़ने का प्रयास स्पष्ट दृग्गोचर होता है। पत्रिका की मुख्य विशेषता है कि यह सम्प्रदाय-सद्भाव को उत्पन्न करने वाली पत्रिका है, इसमें दिगम्बर, खरतरगच्छ, तपागच्छ, तेरापंथ, स्थानकवासी सभी सम्प्रदायों के समाचार आलेख आदि प्रकाशित होते हैं। यह सभी सम्प्रदायों की भावनाओं का आदर करते हुए एक सकारात्मक एवं नई सोच प्रदान करती है। जिनवाणी पत्रिका के अबतक बीस विशेषांक प्रकाशित हो चुके हैं।
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