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भैन पत्रारत्व
प्रथम कालक्रम
जैन समाज की प्रतिष्ठित एवं लोकप्रिय मासिक पत्रिका जिनवाणी का शुभारम्भ जनवरी 1943 को भोपालगढ़ में हुआ। श्री जैन रत्न विद्यालय, भोपालगढ़ के तत्कालीन प्रधानाध्यापक डॉ. फूलचन्द जैन 'सारंग' पत्रिका के प्रथम सम्पादक थे। श्री बसन्तकुमार जैन एवं श्री चम्पालाल कर्नावट ने सहयोगी सम्पादक का दायित्व सम्भाला। पंडित दुखमोचन झा ने पत्रिका का प्रारूप तैयार करने में महत्त्वपूर्ण योगदान किया। पत्रिका के प्रकाशन में प्रारम्भिक काल में बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ा। उस समय द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था, फलस्वरुप कागज प्राप्ति में बहुत कठिनाई होती थी । अतः देशी कागज में पत्रिका को निकालना पडता था । सितम्बर 1944 में जिनवाणी के प्रकाशन पर जोधपुर सरकार के पेपर इकोनॉमी कन्ट्रोल आर्डर द्वारा रोक लगा दी गई। श्रावकों के प्रयास से पुन: दिसम्बर में यह रोक हटा ली गई ।
इतिहास, संस्कृति और धर्म की संवाहक पत्रिका जिनवाणी 42 पृष्ठों ने जैन रत्न विद्यालय से प्रकाशित होती थी । मुखपृष्ठ पर आधे भाग में जिनवाणी, अंक, वर्ष, प्रकाशक एवं सम्पादक का नाम अंकित होता तथा आधे पृष्ठ पर एक विचार भी छपता था । विषय सूची द्वितीय पृष्ठ पर दी जाती थी तथा साथ में जिनवाणी के आजीवन एवं स्तम्भ सदस्यों के नाम अंकित होते थे । पत्रिका का प्रारम्भ ईश- प्रार्थना, जिन प्रार्थना आदि कविताओं के प्रेरक विचारों से तथा समापन 'सम्पादकीय' जैसे चिन्तनपरक विचारों से होता था । यह पत्रिका आदि से अन्त तक मूल्यवान विचारों से सुसज्जित होती थी । निबन्ध, संस्मरण, कविता, चिन्तनपरक लेख, नवीन प्रकाशित पुस्तकों का परिचय, समाज में घटित विशेष समाचारों से युक्त पत्रिका का प्रत्येक अंक पाठकों के मन को लुभाता था । उत्तरोत्तर पत्रिका की विषय वस्तु में नवीन विषयों का प्रत्येक अंक पाठकों के मन को लुभाता था। उत्तरोत्तर पत्रिका की विषय वस्तु में नवीन विषयों का संयोजन होता रहा । इतिहास स्तम्भ, बालवाणी, चयनिका, महिला जगत, सामाजिक समस्या,
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