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________________ namaन पत्रहारत्व AM सामग्री का जो जमावड़ा है, उसका विश्लेषण, उसकी खुली समीक्षा की तैयारी भी हमें रखनी चारिए। वे हमारे दैनन्दिन जीवन में हिंसा का न्यूनीकरण करना चाहते हैं। धर्मस्थान हो का रसोईघर, वेशभूषा हो या सौन्दर्य प्रसाधन सर्वत्र हिंसा को न्यून किया जा सकता है। उनकी दैनीदृष्टि कहती है - “जिलेटिन आज हमारे दैनन्दिन जीवन का अनिवार्य अंग बन गया है ; हमारे स्नानागारों/शौचालयों, रसोईघरों तथा देवालयों में आपनी आसान पहुँच बनाली है अर्थात् हम जिस अहिंसा को परमधर्म मानते हैं उसे हमने धधकते अंगारों पर खड़ा कर दिया है। यह उसकी अग्नि-परीक्षा के विपदाग्रस्त क्षण है; क्या आज हम ऐसे किसी साधुभगवन्त की कल्पना ही नहीं कर सकते जो उपर्युक्त हिंसा से मुक्त हो ? छपाई, फोटोग्राफी, चिकित्सा, साबुन, शृंगार-प्रसाधन, वस्त्र, मन्दिर के प्रक्षाल-वस्त्र इत्यादि तमाम हिंसा-लिप्त हैं। यदि ये चीजों को अपनाते हैं तो ऐसा करना हिंसा का परम स्वीकार है। वरक हमारी धार्मिकता और सामाजिक जिन्दगी की एक अनिवार्यता बन गया है। चमड़े के इस्तेमाल से हम बच नहीं सकते। अतः हमें हिंसा के स्वरुप और उसकी पारम्परिक संरचना पर पुनर्विचार करना चाहिए ताकि उसका न्यूनीकरण (मिनिमाइजेशन) हो। शाकाहार उनका मिशन रहा। शाकाहार के प्रचार-प्रसार के लिए उन्होंने तीर्थंकर शाकाहार प्रकोष्ठ प्रारम्भ किया तथा जनवरी-फरवरी1987 से 'शाकाहार क्रान्ति' नामक स्वतंत्र पत्रिका का शुभारंभ किया, अपैल-1990 तक 'शाकाहार क्रान्ति' द्विमासिक पत्रिका रही तथा पंजीकृत होने के पश्चात् मई 1990 से इसका मासिक प्रकाशन शुरु हुआ जो उनके दिवंगत होने के पूर्व जुलाई 2001 तक नियमित चलता रहा। इस पत्रिका के माध्यम से शाकाहार के समर्थन में जो आलेख प्रकाशित हुए उनसे देश-विदेश में एक वातावरण बना। चेन्नई में प्रारम्भ ‘करुणा आन्तरराष्ट्रीय' भी उनके ऐसे प्रयासों का परिणाम है। करुणा अन्तरराष्ट्रीय के द्वारा देश के विभिन्न राज्यों के विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में हजारों ૧૩૫
SR No.023469
Book TitleJain Patrakaratva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunvant Barvalia
PublisherVeer Tattva Prakashak Mandal
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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