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________________ नैन पत्रारत्व अछूता रहता ? जैन पत्रिकाओं ने भी अपने राष्ट्र धर्म को निभाया। राष्ट्र के स्वतंत्र होने पर उसने स्वतंत्रता - नई समाज रचना कोभी उजागर किया । मैं समझता हूँ कि जैनपत्रिकाओं की उस समय की दिशा स्पष्ट थी पर हर पत्र को आर्थिक संघर्षों में जूझना पड़ा। हमारा समाज कथित रुप से प्रगतिशील है पर यदि उसे किसी कार्य में मुनाफा न हो तो उसके प्रति सहृदयता की कमी रहती है । पत्रकारिता और पत्रकार समाज की दृष्टि से या यों कहे धनाढ्य के मुनाफे के द्वार खोलने में सक्षम नहीं लगे। मजे की बात कि धनवान कभी-कभी पत्रिकाओं को दान देकर उपकार तो करते रहे - पर उसकी तंदुरस्ती का ख्याल नहीं किया । पत्रिकाओं पर लगाया धन उनके लिए मात्र दान देना या दया दिखाना रहा परिणाम स्वरुप अनेक पत्रिका यें यौवन से पूर्व ही या तो बूढ़ी हो गई या मर गई। उनका बालमरण हुआ। एक सत्य यह भी है कि पत्रिकाओं का कार्य अध्यापक, धर्म का पंडित करता था जिसे सदैव अपना कटोरा फैलाये रखना पड़ता था । पर इस परिस्थिति में भी कुछ श्रेष्ठियों ने विशाल घराने के लोगों ने राष्ट्रीय दैनिक के साथ धार्मिक साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक भी प्रारंभ किए। हाँलाकि वे भी दीर्घजीवी कम ही रहे। इस दृष्टि से पत्रिकाओं की दशा ठीक नहीं रही । - - - दौर बदलता २०वी शताब्दी में पत्र-पत्रिकाओं की संख्या में वृद्धि हुई। लोगों में जागृति आई । विद्वानों ने पत्रिकाओं का महत्त्व समझा । विविध समाचार-लेखादि बढ़ने लगे। पर, एक दूषण भी उसमे पैदा हुआ अपनी प्रसिद्धि के लिए पत्रिकायें बिकने लगीं या बँटने लगी। साधुवर्ग का उदय, उनकी समाज को पुण्य-स्वर्ग के नाम पर दिग्भ्रमित करने की चाल सफळ हुई और वर्तमान में हर सम्प्रदाय का प्रमुख प्रतिभावान साधु अपनी पत्रिका प्रकाशित करने या कराने में लगा है। प्रारंभिक तटस्थ या निरपेक्ष पत्रिकायें उनको पूरा स्थान न दे सकी या यों कहें अपनी तटस्थाओं के साथ समझौता नहीं कर सकीं - दूसरी और अतिश्रद्धालु या अंधश्रद्धालुओं के भक्तों के कारण उन्होंने अपनी गुण-गाथा, प्रचार के लिए स्वयंभू गणधर बनने के 903 - -
SR No.023469
Book TitleJain Patrakaratva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunvant Barvalia
PublisherVeer Tattva Prakashak Mandal
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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