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MMMMMMMMMM न पत्रहारत्व AAMAM के वैशिष्ट, सामाजिक, आर्थिक परिस्थितियों के साथ वर्तमान राजनीति के साथ भी कदम मिलाया है। जैनपत्रों की सर्वाधिक विशेषता "तीर्थंकरों के द्वारा उपदेशित सिद्धांतों- सविशेष अहिंसा आदि पंचव्रतों के द्वारा संस्कारो के विस्तरण का कार्य किया । जब हम पंचव्रतों की बात करते हैं तो हम जैनत्व से बहत ऊपर उठकर वैश्विक स्तर की बात ही करते हैं। उदाहरणार्थ क्या अहिंसा की बात मात्र जैनों के लिए हैं ? क्या प्राणिमात्र के जीवनरक्षा की भावना नहीं है ? क्या युद्ध-परस्पर द्रोह से बचने का संदेश नहीं है ? सत्य, अहिंसा, अचौर्य, सुशील व अपरिग्रह व्रत पूरे विश्वमानव समाज के लिए संदेश वाहक नहीं है ? यह सत्य है कि जैनधर्म के सिद्धांतों को सामान्य पत्रकारिता में जो स्थान मिलना चाहिए था - वह नहीं मिल रहा था, उसकी स्वतंत्र सत्ता का स्वीकार नहीं किया जा रहा था - इस परिप्रेक्ष्य में जैनपत्रकारिता की विशेष महत्ता है।
हम जैनपत्रकारिता को यदि काल विभाजन की दृष्टि से देखें तो - प्रारंभिक काल उदयकाल एवं वर्तमानकाल। तीन में विभाजित कर सकते हैं।
इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता कि जैनधर्म की मुख्य दो धाराओं श्वेतांबर-दिगंबर के सैद्धांतिक पक्षों की कतिपय भिन्नताओं के कारण भी दो धाराओं का प्रतिनिधित्व करती रही।
प्रारंभिक काल में विषय वस्तु की दृष्टि से सैद्धांतिक तथ्यों की चर्चा, संस्कारों की चर्चा, जैनत्व के मूल सिद्धांतों की चर्चा, पुराण-इतिहास संबंधी चर्चाओं के साथ तीर्थों के मतभेद, संघर्षों को विशेष स्थान दिया जाता रहा। अपने-अपने पक्ष की सबलता प्रस्तुत की जाती रही। अधिकांश पत्रिकाओं में धार्मिक कार्यक्रमों सामाजिक समाचारों को विशेष स्थान मिलता रहा।
काल क्रमानुसार राष्ट्रीय आंदोलन, स्वतंत्रता संग्राम फैलता रहा। अनेक जैनों ने आज़ादी के लिए समर्पण किया, जेल गये - फाँसी पर भी चढ़ गये। जैन समाज जब राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय था तो हमारा पत्रकारित्व कैसे
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