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न पत्रारत्व
जैन पत्रकारिता : दिशा और दशा
- डॉ. शेखरचंद्र जैन
के
अहमदाबाद स्थित डॉ. शेखरचंद्र जैन गुजरात विविध कॉलेज में अध्यापन कार्य में 25 से ज्यादा साल
देश-विदेश में
जूडे थे। 'तीर्थंकर वाणी' के तंत्री है।
जैन धर्म पर सफळ प्रवचन दे रहे हैं।
" पत्रकार” तत्कालीन समय की तीसरी आँख एवं चौथा स्तंभ माना गया है। वह घटनाओं का प्रत्यक्षदर्शी होता है । घटनाओं का मात्र वर्णनकर्ता नहीं होता अपितु उसकी तह तक जाता है। वह सत्य को उजागर करनेवाला होता है । उसका तथ्य - निरुपण ही इतिहास बन जाता है । इसका कारण होती है उसकी तटस्थ दृष्टि, वह संवाददाता भी है- संवाद को मूर्त रुप देनेवाला भी है।
अभिधार्थ में देखें तो " पत्र" का सीधा सा अर्थ "चिट्ठी" है । पत्र परस्पर के विचारों, भावों, समाचारों के आदान-प्रदान का माध्यम रहा है। कभी अतीत में वह मौखिक रहा होगा - पर उसकी महत्ता लेखन के पश्चात अधिक महत्त्वपूर्ण बनी। कभी वह “खबरी" रहा, वह अपने राज्यों, स्वामी के लिए अन्य राज्यों आदि की खबरें इकट्ठी करता था । धीरे-धीरे परिस्थितियां बदलती गई और उसकी भूमिका भी विस्तृत होती गई।
यद्यपि पत्रकारिता के इतिहास पर बहुत कुछ लिखा जा सकता है पर यहाँ मेरे विषय की सीमा " जैन पत्रकारिता की दिशा और दशा" पर है । वैसे देखें तो पत्रकारिता तो पत्रकारिता है - उसे किसी धर्म या समाज के साथ बाँधना वैसे ठीक नहीं पर पूरे परिप्रेक्ष्य के संदर्भ में हम उसका जैनधर्म, दर्शन, कला, गवेषणा, एवं सामाजिक उत्थान के साथ मूल्यांकन करना चाहेंगे।
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जैन धर्म और समाज, पूरे समाज देश का एक अंग होते हुए भी उसकी स्वतंत्र पहिचान है। जैन पत्रकारों ने अपनी पत्रिकाओं के माध्यम से जैनधर्म
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