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________________ भूमिका [ ३७ पिङ्गल - सम्मत दो नगण, आठ रगण' का प्राप्त है; जब कि लक्ष्मीनाथ भट्ट ने 'पिंगलप्रदीप ' " में प्रचितक का लक्षण दो नगरण, सात यगण स्वीकार किया है । दो नगण, सात यगरण के लक्षण को 'वृत्त मौक्तिक में 'सर्वतोभद्र' दण्डक का लक्षण माना है और मतान्तर का उल्लेख करते हुए लिखा है - 'एतस्यैवान्यत्र 'प्रचितकं' इति नामान्तरम् । अतः मेरे मतानुसार चतुर्थ अर्द्धसम- प्रकरण तक की रचना चन्द्रशेखर भट्ट की है और पंचम विषमवृत्त प्रकरण से अन्त तक की रचना लक्ष्मीनाथ भट्ट की होनी चाहिये । अस्तु. ५. वृत्तमौक्तिक वार्त्तिकदुष्करोद्धार - चन्द्रशेखरभट्ट रचित वृत्तमौक्तिकप्रमथ खण्ड के प्रथम गाथा - प्रकरणस्थ पद्य ५१ से ८६ तक के ३६ पद्यों पर यह टीका है । टीकाकार ने इसे ११ विश्रामों में विभक्त किया है । मात्रोद्दिष्ट, मात्रानष्ट, वर्णोद्दिष्ट, वर्णनष्ट, वर्णमेरु, वर्णपताका, मात्रामेरु, मात्रापताका, वृत्तस्थ लघुगुरुसंख्या-ज्ञान, वर्णमर्कटी और मात्रामर्कटी नामक विश्राम हैं । छन्दःशास्त्र में यदि कोई कठिनतम विषय है तो वह है प्रस्तार । इसी प्रस्तारस्वरूप का टीकाकार ने बहुत ही रोचक शैली में विशद वर्णन किया है, जिससे तज्ज्ञगण सरलता के साथ इस दुष्कर प्रस्तार का श्रवगाहन कर सकते हैं। इस टीका की रचना सं० १६८७ कार्तिककृष्णा पंचमी को हुई है । यह टीका प्रस्तुत ग्रंथ में पृ० २६२ से ३२६ तक में मुद्रित है । ६. शिवस्तुति - यह शायद भगवान् शिव का स्तोत्र है या अष्टक या कविकृत किसी ग्रंथ का अंश है निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता ! वृत्तमौक्तिक में मदनगृह नामक मात्रिक छन्द का प्रत्युदाहरण देते हुए लिखा है: - 'यथा वाऽस्मत्पितुः शिवस्तुती' । अतः संभवतः यह स्तोत्र ही होना चाहिए । पद्य निम्नलिखित है: करकलितकपालं धृतनरमालं भालस्थानलहुतमदनं कृतरिपुकदनं । भवभयहरणं गिरिजारमणं सकलजनस्तुतशुभचरितं गुणगणभरितम् । १ - देखें, वृत्तमौक्तिक पृ० १८४ २- 'श्रथ प्रचितको दण्डकः - प्रचितकसमभिधो धीरधीभिः स्मृतो दण्डको न द्वयादुत्तरैःसप्तभिर्यैः । नगरणद्वयादुत्तरैः सप्तभिर्यगणैर्धीरधीभिः सप्तविंशतिवर्णात्मकचररणः प्रचितकाख्यो दण्डकः स्मृतः ।' [ प्राकृतपैंगलम् पृ० ५०६ ] ३ - देखें, वृत्तमौक्तिक पृ० १८५ ४ -,, पृ० ३२६ ५-,, पृ० ४५
SR No.023464
Book TitleVruttamauktik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishtan
Publication Year1965
Total Pages678
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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