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________________ मात्रिक छन्दों के लक्षण एवं नाम-भेद [ ४१६ छन्द-नाम मात्रा-संख्या एवं लक्षण सन्दर्भ-ग्रन्थ-सङ्केताङ्क दीपक [१०; चतुष्पदी; ड, लघु २, १, ६ १२, १४, १६, १७. जगण] सिंहविलोकित [१६; चतुष्पदी; सगण और १, १२, १६, १७; सिंहावलोक- ६, १४. ४ लघु का यथेच्छ प्रयोग] प्लवङ्गम [२१; चतुष्पदी; ट. ठ. ड. १, ६, १२, १६, १७. जगण, गुरु लीलावती [३२; चतुष्पदी; लघु गुरु वर्ण- १, ६, १२, १६; लीलावतिका- १७. नियम रहित; ड-८; 'ड' में सगण, ४ लघु जगण, भगण, गुरुद्वय का प्रयोग अपेक्षित है] हरिगीतम् [२८; चतुष्पदी; ठ. ट. . ठ. १, १२, १६; हरिगीतक- १७. ठ, गुरु] हरिगीतकम् [३०; चतुष्पदी; ठ. ट. ठ. ठ. १, ठ. गुरुद्वय] मनोहर- २८; चतुष्पदी; ठ. ट. ठ. ठ. १, हरि गीतम् ठ. गुरु; विराम पर 'ठ' गुर्वत अपेक्षित है। यति १६, १२ पर है। हरिगीता [२८; चतुष्पदी; ठ. ट. ठ. ठ. १, ६. ठ. गुरु; विराम ६, ७, १२ पर अपेक्षित है] अपरा हरि. [२८; चतुष्पदी; 3. ट. ठ. ठ. १, गीता ठ. गुरु; विराम १४-१४ पर अपेक्षित है] त्रिभंगी [३२; चतुष्पदी; ड- ८; १, ६, १२, १६, १७. जगण निषिद्ध है] दुर्मिलका [३२; चतुष्पदी; ड-८] १, १२; दुर्मिला- ६, १६, १७; हीरम् [२३; चतुष्पदी; ट. ट. ट. १. ६, १६; हीरक- १२, १७. रगण; 'ट' एक गुरु और ४ लघु रूप होना चाहिए। जनहरणम् [३२; चतुष्पदी; ड-८, जिसमें १, १६; जलहरण- ६, १२, १७. २८ लघु और अन्त में सगण
SR No.023464
Book TitleVruttamauktik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishtan
Publication Year1965
Total Pages678
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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