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________________ ४१८ । वृत्तमौक्तिक-चतुर्थ परिशिष्ट (क.) छन्द-नाम शिखा मात्रा-संख्या एवं लक्षण सन्दर्भ-ग्रन्थ-सङ्कताङ्क [विषम द्विपदी; प्रथम पद में १, ६, १२, १४, १६, १७. २८ मात्रा, २७ वर्ण; ड- ६, जगण; द्वितीय पद में ३२ मात्रा, ३१ वर्ण; ड-७, जगण; दोनों पदों में 'ड' चार लघुरूप में हों। माला चुलियाला सोरठा हाकलि [विषम द्विपदी; प्रथम पद में १, ९, १२, १४, १६, १७. ४५ मात्रा, ४१ वर्ण; ड. ६ रगण, गुरुद्वय; द्वितीय पद में गाथा छन्द का तृतीय और चतुर्थ चरण अर्थात् २७ मात्रा] [१३, १६, १३, १६ ; अर्द्धसम] १, ६, १२, १६, १७; चूलिका-१४. [११, १३, ११, १३ अर्द्धसम] १, ६, १२, १७; सौराष्ट्र- १६, १७; ___सौराष्ट्रा- १४; सौराष्ट्री- १७.. [१४; चतुष्पदी; प्रथम-द्वितीय १, ६, १२, १६. १७; काहलि- १४. चरण में ११-११ वर्ण और तृतीयचतुर्थ चरण में १०-१० वर्ण; सगण या भगण दो गण हों और नगण तथा लघु गुरु हों] [८; चतुष्पदी; ड, जगण] १, ६, १२, १६; मधुभारतम्- १४; वसुकला-१७; तालवनचरित की टीका में 'कलगीत' [११; चतुष्पदी; चरण के १, ६, १२, १४, १६, १७; यमलार्जुन अन्त में जगण अपेक्षित है।] भञ्जनस्तोत्र की टीका में 'अनुकूला' [३२; चतुष्पदी; ड. ड. ड. १, ६, १६; दण्डकाहल- १४. ड. ट. ड. ड. गुरु] [३२; चतुष्पदी; यतिभेद- १, दण्डकला में १०, ८, १४ पर यति होती है और इसमें १६, १६ पर यति होती है] [३० द्विपदी; ड-७, गुरु; जगण १, १२, १७, निषिद्ध है मधुभार भाभीर दण्डकला कामकला रुचिरा
SR No.023464
Book TitleVruttamauktik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishtan
Publication Year1965
Total Pages678
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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