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मात्रिक छन्दों के लक्षण एवं नाम-भेद
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छन्द-नाम मात्रा-संख्या एवं लक्षण सन्दर्भ-ग्रन्थ-सङ्केताङ्क
लघु हों; द्वितीय चरण में 'ड. ड. ड.' तीसरा 'ड' चार लघुरूप में हो; तृतीय और पञ्चम चरण में 'ढ. ड. ड. ड.' अन्त में दो लघु आवश्यक हैं; चतुर्थ चरण में 'ड. ड. ढ' और अन्तिम चार चरण दोहा
लक्षणानुसार होते हैं। करभी रड्डा [१३, ११, १३, ११. १३, दोहा१, ७, ६; कलभी- १४. नन्दा रड्डा [१४, ११, १४, ११, १४, दोहा] १, ६, १४; मोदनिका- ७. मोहिनी रड्डा [१६, ११, १६, ११, १६, दोहा) १, ६, १४. चारुसेना रड्डा [१५, ११, १५, ११, १५, दोहा] १, ६, १४; चारुनेत्रा- ७. भद्रा रड्डा [१५, १२, १५, १२, १५, दोहा] १, ६, १४. राजसेना रड्डा [१५, १२, १५, ११, १५, दोहा] १, ६, १४. तालंकिनी रड्डा [१६, १२, १६ ११, १६, दोहा] १, ६, १४; राहुसेनिका-७. पद्मावती [३२; चतुष्पदी; ड- ८; ये १, ६, १२, १४, १६; पद्मावतिका
'ड' 55,15, 5।।।।।। १७. रूप में होने चाहिये । जगण
का निषेध है।] कुण्डलिका [दोहा-काव्य-मिश्रित १, ६, १२, १४, १६, १७; प्राकृतपिङ्गला
नुसार दोहा-उल्लाला-मिश्रित. गगनाङ्गणम् [२५ मात्रा, २० वर्ण; चतुष्पदी; १, १२, १७; गगनाङ्ग-६, १६;मदनान्तक
ट. ड. ड. ड. ड. ल. ग.] १४. द्विपदी [२८; ट. ड. ड. ड. ड. ग.] १, ६, १२, १४, १६; ५ के अनुसार २६
मात्रा द्विपदी; एवं ६, १०, १६, २१ के अनुसार २८ मात्रा चतुष्पदी; द्विदला१७; भाण्डीरक्रीडनस्तोत्र की टीका में १२
मात्रा, चतुष्पदी माना है। झुल्लणा
[३७; द्विपदी; गणनियमरहित] १; झुल्लन- ६, १६. खजा [४१; द्विपदी; ड-६, रगण; १, ६, १२, १४, १६; खञ्जिका- १७; 'ड' चार लध्वात्मक हों] खंजक-५, ६; १० के अनुसार २३ मात्रा
चतुष्पदी है।