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वृत्तमौक्तिक-दुर्गमबोध
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मात्रामेरु-कर्त्तव्यता
सिर अंके तसु सिर पर अंके, उवरल कोट्ठ पुरुहु निस्संके। मत्तामेरु अंक संचारि, बुज्झइ बुज्झइ जन दुइ चारि ॥
[प्राकृतपैङ्गलम् परि० १, पद्य ४७] दुई दुई कोठा सरि लिहहु, पढम अंक तसु अंत । तसु माईहि पुणु एक्कु सउ, पढमे बे बि मिलंत ।
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| १५ | ३५ | २८| | १८६
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१३. । 555555| | ५६ /१२६ १२० | ५५ | १२ | १ |३७७ १४. 5555555
......... | | | २८ | १२६ २१० | १६५) ६६ | १३ | १६१० | ८ |८४ | २५२ ३३० २२० | ७८ | १४ | १९८७
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अयुगपङ क्तः पूर्वभागे एकाङ्कं दद्यात्, समकोष्ठकपक्तिद्वयमध्ये प्रथमपंक्ते आदिमकोष्ठे इत्यर्थः । समकोष्ठकपङ्क्तिद्वयमध्ये द्वितीयपङ क्तेराद्यकोष्ठे पूर्वयुग्माकं दद्यात् ।