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________________ वर्णमर्कटी यथा ३२० ] प्रभेदः १६ | ३२ । ६४ | १२८ | २५६ | ५१२ | १०२४ । २०४८ | ४०६६ | ८१९२ मात्राः | ३ | १२ | ३६ | १६ | २४० | ५७६ / १३४४ | ३०७२ | ६९१२ / १५३६० | ३३७६२ |७३७२८१५९७४४ वर्णाः | २ | ८ | २४ । ६४ ! १६. | ३८४ | ८६६ | २०४८ ! ४६०८ | १०२४० | २२५२८ |४६१५२ १०६४६६ वृत्तमौक्तिक-धात्तिक-दुष्करोद्धार गुरवः | १ | ४ . | १२ | ३२ / ८० | १९२ | ४४८ | १०२४ | २३०४ | ५१२० | ११२६४ |२४५७६ ५३२४८ लघवः | १ | ४ | १२ | ३२ | ८० | १९२ | ४४८ | १०२४ / २३०४, ५१२० | ११२६४ २४५७६ / ५३२४८ इति त्रयोदशवर्णा मर्कटी । एवमन्यापि वर्णमर्कटी समुन्नेया । पंचमः प्रत्ययो वर्णमर्कटिकाख्यः । इति श्रीमन्नन्दनन्दनचरणारविन्दमकरन्दास्वादमोदमानमानसचञ्चरीकालङ्कारिकचक्रचूडा मणि-छन्दःशास्त्रपरमाचार्य-साहित्यार्णवकर्णधार-श्रीलक्ष्मीनाथभट्टारकविरचिते श्रीवृत्तमौक्तिक-वात्तिक-दुष्करोद्धारे एकाक्षरादि षड्विंशत्यक्षरावधिवर्णप्रस्तारेषु वर्णमर्कटीप्रस्तारोद्धारो नाम दशमो विधामः॥१०॥
SR No.023464
Book TitleVruttamauktik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishtan
Publication Year1965
Total Pages678
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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