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________________ ४] 'छंदयति पृणाति रोचते इति छंद: ।' जिस वाणी को सुनते ही मन आह्लादित हो जाता है वह वाणी ही छंद है - 'छंदयति प्रह्लादयति छंद्यते अनेन इति छंदः ।" वृत्तमौक्तिक स्पष्ट है कि छंद के रूप में अक्षर-मर्यादा का निर्वाह करने का सम्बन्ध शब्द-संघटना से है और प्रकाशन एवं प्रह्लादन का सम्बन्ध अर्थ के साथ है । इसी तरह छंद के प्रथम दो लक्षणों का संबंध वक्ता से होता है और तृतीय का श्रोता से । इस दृष्टि से छंद, श्रोता और वक्ता के बीच में प्रभावशाली सेतु का काम करता है । शतपथब्राह्मण में 'रसो वै छंदांसि '" कह कर छंद की रागात्मिका अनुभूति और अभिव्यक्ति की ओर स्पष्ट संकेत किया गया है । छन्दः शास्त्र - छंदः शास्त्र में छंदों का विवेचन किया जाता है । भारतवर्ष में वैदिक तथा लौकिक संस्कृत भाषा के छंदों पर विचार अत्यन्त प्राचीन काल से ही प्रारम्भ हो गया था । वैदिक छन्दोमीमांसा में छंदः शास्त्र का आदि मूल वेद माना गया है । छंदः शास्त्र के प्राचीन संस्कृत वाङ्मय में प्रयुक्त अनेक नामों का उल्लेख भी इसमें है । यथा (१) छंदोविचिति, (२) छंदोमान, (३) छंदोभाषा, (४) छंदोविजिनि, (५) छंदोनाम, (६) छंदोविजिति : छंदोविजित, (७) छंदोव्याख्यान, ( ८ ) छंदसां विचय:, (६) छंदसां लक्षणम्, (१०) छंदः शास्त्र, ( ११ ) छंदोऽनुशासन, (१२) छंदोविवृत्ति, (१३) वृत्त, (१४) पिंगल | छंदोविचिति पद का अर्थ है - वह ग्रन्थ जिसमें छंदों का चयन किया गया हो । यह पद पाणिनि के गणपाठ, कौटिल्य के अर्थशास्त्र, सरस्वतीकण्ठाभरण, गणरत्नमहोदधि श्रादि में प्रयुक्त हुआ है। पिंगलप्रोक्त छंदोविचिति, पतंजलिप्रोक्त छंदोविचिति, जनाश्रयप्रोक्त छंदोविचिति, दण्डिप्रोक्त छंदोविचिति तथा एक अन्य पालिभाषा के छंदोविचिति का नामोल्लेख श्रीमीमांसकजी ने किया है। 2 छंदोमान नाम भी ग्रंथवाची है । पाणिनि के गणपाठ, सरस्वतीकण्ठाभरण आदि में यह नाम प्रयुक्त हुआ है, परन्तु अभी तक इस नाम का कोई ग्रंथ नहीं १ - संस्कृत साहित्य का इतिहास - वाचस्पति गेरोला, पृ० ११० - २- शतपथ ब्राह्मण, ७।३।१।३७ ३ - वैदिक छंदोमीमांसा, पं० युधिष्ठिर मीमांसक, पृ० ४३ ४ ३५ ५ ३६ " 39 19 "
SR No.023464
Book TitleVruttamauktik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishtan
Publication Year1965
Total Pages678
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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