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________________ भूमिका [ * मिला है । जिस ग्रंथ में छंदों का भाषण या व्याख्यान मिलता हो उसे छंदोभाषा कहा गया है । गणपाठों में यह नाम श्राया है ।' ऐसी भी मान्यता है कि छंदोभाषा नाम प्रातिशाख्यों के लिए प्रयुक्त हुआ है । विष्णुमित्र ने ऋक्प्रातिशाख्य की वृत्ति में छंदोभाषा शब्द का अर्थ वैदिक भाषा किया । कुछ अन्य लोगों ने छंद का अर्थ छंदःशास्त्र तथा भाषा का अर्थ व्याकरण या निरुक्त किया है । परन्तु पं० युधिष्ठिर मीमांसक ने इन मतों को निराकृत करके छंदोभाषानामक छंदः शास्त्र के ग्रंथों का अस्तित्व माना है उन्होंने भी इस नाम को चरणव्यूह आदि में प्रातिशाख्य के लिए प्रयुक्त माना है। जिस ग्रंथ द्वारा छंदों पर विजय प्राप्त हो सके उसे छंदोविजिति कहा जाता है | चांद्र गणपाठ, जैनेन्द्र गणपाठ, सरस्वतीकण्ठाभरण आदि में यह नाम प्रयुक्त हुआ है। छंदोनाम के लिए मीमांसकजी ने संभावना प्रकट की है कि यह छंदोमान का अपभ्रंश हो सकता है । छंदोव्याख्यान, छंदसां विचय, छंदसां लक्षण, छंदोऽनुशासन, छंदःशास्त्र आदि भी छंदोविषयक ग्रंथों के नाम हैं । वृत्त पद के आधार पर वृत्तरत्नाकर आदि ग्रंथों के नामकरण किए गये हैं । हमारे विवेच्य ग्रंथ वृत्तमौक्तिक का नाम भी इसी परम्परा में उल्लेखनीय है । छन्द: शास्त्र के लिए पिंगल - नाम छंदः शास्त्र के प्रमुख प्राचार्य पिंगल के कारण ही प्रयुक्त हुआ ज्ञात होता है । " पिंगल नाम के अनेक प्राकृतभाषा के ग्रंथ प्रसिद्ध हैं । छन्दः शास्त्र को प्राचीनता वैदिक छंदों के नाम सर्वप्रथम वैदिक संहिताओं में ही प्रयुक्त हुए हैं । वैदिक षडंगों में छंदः शास्त्र का नाम भी आता है । वेदमंत्रों के साथ उनके छंदों का नामोल्लेख भी हुआ है । उनका विशुद्ध और लयबद्ध उच्चारण छंद : शास्त्र के ज्ञान से ही सम्भव है । इसलिए वेदार्थ के विषय में विवेचन करने वाले सभी ग्रंथों में छंदों का भी प्रसंगवश उल्लेख मिल जाता है । पाणिनि ने गणपाठ में छंदः शास्त्र - सम्बन्धी ग्रंथों का उल्लेख किया है। उनके समय में तो लौकिक संस्कृत भाषा में महाकाव्यों की रचनाएं लिखी जाने लगीं १ - वैदिक छन्दोमीमांसा पृ० ३७ २ - संस्कृत साहित्य का इतिहास – गंरोला, पृ० १९१ ३ - अन्य मतों के लिए देखो - वैदिक छंदोमीमांसा, पृ० ३७-३६ ४ - वैदिक छंदोमीमांसा, पृ० ३६-४० ५ ४२ 17
SR No.023464
Book TitleVruttamauktik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishtan
Publication Year1965
Total Pages678
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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