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________________ भूमिका [७५ वृत्तमौक्तिक और वाणीभूषण दोनों की समानताओं का भी उल्लेख करना यहां अप्रासंगिक न होगा। (१) दोनों ही ग्रंथ मात्रिकवृत और वणिकवृत्त नामक दो परिच्छेदों में विभक्त हैं। (२) विषयक्रम और छन्दक्रम दोनों का समान है। (३) पारिभाषिक शब्दावली का दोनों ने पूर्ण प्रयोग किया है। (४) दोनों ग्रंथों में छन्दों के लक्षण कारिका-रूप में न होकर लक्षणसम्मत पूर्ण-पद्यों में हैं। (५) लक्षण एवं उदाहरण दोनों के स्वरचित हैं। (६) लक्षणों की शब्दावली भी एक-सदृश है । तुलना के लिये कुछ स्थल द्रष्टव्य हैं वृत्तमौक्तिक वाणीभूषण शिवशशिदिनपतिसुरपतिशेषाहिसरोजधातृकलिचन्द्राः । ध्रुवधौ शालिकरः षण्मात्रे स्युस्त्रयोदशविभेदाः ।।६॥ इन्द्रासनमथ शूरश्चापो हीरश्च शेखरं कुसुमम् । अहिगणपापगणाविति पञ्चकलानां च नामानि ॥१०॥ + + तातपितामहदहनाः पदपर्यायाश्च गण्डबलभद्रो। जङ्घायुगलं रतिरित्यादिगुरोश्चतुष्कले संज्ञाः ।।१७।। ध्वजचिह्नचिरचिरालयतोमरतुम्बुरुकचूतमाला च । रसवासपवनवलया लघ्वादित्रिकलनामानि ॥१८॥ हरशशिसूर्याः शक्रः शेषोप्यहिकमलधातृकलिचन्द्राः । ध्रुवधर्मशालिसंज्ञाः षण्मात्राणां त्रयोदशव भिदाः ।।१६॥ इन्द्रासनमथ सूर्यः, चापो हीरश्च शेखरं कुसुमम् । अहिगणपापगणाविति पञ्चकलस्यैव संज्ञाः स्युः ।।२०।। + दहनपितामहताताः पदपर्यायाश्च गण्डबलभद्रौ। जङ्घायुगलं रतिरित्यादिगुरो स्युश्चतुष्कले संज्ञाः ॥२२॥ ध्वजचिह्नचिरचिरालयतोमरपत्राणि चूतमाले च। रसवासपवनवलया भेदास्त्रिकलस्य लघुकमालम्ब्य ।।२३।। + + +
SR No.023464
Book TitleVruttamauktik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishtan
Publication Year1965
Total Pages678
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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