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________________ ७४ । वृत्तमौक्तिक NAMA सगणा भगणा दिअगणइ सगणैर्भगणनलघुयुतैः मत्त चउद्दह पन पलई । ___ सकलं चरणं प्रविरचितम् । संठइ वंको विरइ तहा गुरुकेन च सर्व कलितं हाकलि रूपउ एहु कहा ॥१७२।। हाकलिवृत्तमिदं कथितम्।।२२॥ [चतुर्थ प्रकरण] + + __ + + प्राकृतपिंगल और वृत्तमौक्तिक में निम्न असमानतायें हैं-- १. प्राकृतपिंगलकार ने छन्दों के उदाहरण पूर्ववर्ती कवियों के दिये हैं और वृत्तमौक्तिककार ने समग्र उदाहरण स्वरचित दिये हैं, प्रत्युदाहरण पूर्ववर्ती कवियों के अवश्य दिये हैं। २. शिखा, कामकला, रुचिरा, हरिगीतं के भेद, मदिरा सवैया, मालती सवैया, मल्ली सवैया, मल्लिका सवैया, माधवी सवैया, मागधी सवैया, घनाक्षर और गलितक प्रकरण के १७ छन्द विशिष्ट हैं जो प्राकृतपिंगल में प्राप्त नहीं हैं। ३ प्रथम खण्ड छह प्रकरणों में विभक्त है। वृत्तमौक्तिक के द्वितीय खंड की रचना प्राकृतपिंगल के अनुकरण पर नहीं है। रचना-शैली, शब्दावली, प्रकरण आदि सब पृथक् हैं। प्राकृतपिंगल के द्वितीय परिच्छेद में केवल १०४ वर्णिक छन्द हैं और वृत्तमौक्तिक में २६५ वणिक छन्द, प्रकीर्णक, दण्डक, अर्धसम, विषम, वैतालीय छन्द, यति-प्रकरण, गद्य-प्रकरण और विरुदावली आदि कई विशिष्ट प्रकरण हैं जो कि अन्यत्र दुर्लभ हैं। वृत्तमौक्तिक और वाणीभूषण प्राकृतपिंगलकार हरिहर के पौत्र, रविकर के पुत्र दामोदरप्रणीत वाणीभूषण प्राकृतपिंगल का संस्कृत रूपान्तर है और इस ग्रंथ का वृत्तमौक्तिककार ने भी यथेच्छ प्रयोग किया है। प्रत्युदाहरणों में सुन्दरी, तारक, चक्र, चामर, निशिपालक, चञ्चला, मञ्जीरा, चर्चरी, क्रीडाचन्द्र, चन्द्र, धवल, गण्डका एवं दीपक (मात्रिक) के उदाहरणों का तो प्रयोग किया ही है किन्त रुचिरा (मात्रिक) और किरीट (वणिक) छन्द के तो लक्षण एवं उदाहरण भी ज्यों के त्यों उद्ध त कर दिये हैं । अतः यह निःसंकोच मानना होगा कि पूर्ववर्ती वाणीभूषण का वृत्तमौक्तिककार ने पूर्णतया अनुकरण किया है ।
SR No.023464
Book TitleVruttamauktik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishtan
Publication Year1965
Total Pages678
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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