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________________ (. ७ ) यह भामहके लक्षणके ही समान है। ६ ध्वनिकार आनन्दवर्द्धनके मतमें "काव्यस्यात्मा ध्वनिः" १-१ अर्थात काव्यकी आत्मा ध्वनि है। वे ही अन्यत्र काव्य के सामान्य लक्षणके रूपमें लिखते हैं "सहृदयहृदयाह्लादिशब्दाऽर्थमयत्वमेव काव्यलक्षणम्' अर्थात् सहृदयके हृदयको आह्लादित करनेवाले शब्द और अर्थ ही काव्यस्वरूप हैं। ७ वक्रोक्तिजीवितकार कुन्तकके मतमें___ "शब्दाऽथौं सहितौ बक्रकविव्यापारशालिनि । बन्धे व्यवस्थितौ काव्यं तद्विदाह्लादकारिणि ॥" १-७ अर्थात कविक शक्त व्यापारसे शोभित, काव्यके जाननेवालोंको आह्लाद करनेवाले बन्ध ( गुम्फ ) में व्यवस्थित सम्मिलित शब्द और अर्थ काव्य है। ८ व्यक्तिविवेककार :जानक महिमभट्टके मतमें"विभावादिसंयोजनात्मा रसाऽभिव्यक्तथव्यभिचारी कविव्यापारः काव्यम्" अर्थात् विश्राव आदिके संयोजनस्वरूप, रसकी अभिव्यक्ति में अव्यभिचारी कविव्यापार "काव्य" है। ९ सरस्वतीकण्ठाभरणमें भोजदेवके मत में "निर्दोषं गुणवत्काव्यमलङ्काररलककृतम् । रसाऽन्त्रितं कविः कुर्वन्कीर्तिं प्रीतिं च विन्दति ।।" अर्थात दोषरहित, गुणसहित, अलङ्कारोंसे अलङ्कृत और रससे युक्त "काव्य"को बनानेवाला कवि कोर्ति और प्रीतिको प्राप्त करता है। शृङ्गारप्रकाशमें वे ही “गन्दाऽथों सहितौ काव्यम्" ऐसा लक्षण देते हैं। १० औचित्यविचारच कार क्षेमेन्द्र के मतमें . "औचित्यं काव्यजीवितम्" इस उक्तिके अनुसार औचित्य ही काव्यका जीवन है। वे ही अपने कविकण्ठाभरणमें लिखते हैं "काव्यं विशिष्टशब्दाऽर्थसाहित्यसदलस्कृति ।" अर्थात् उत्तम अलङ्कारसे युक्त विशिष्ट शब्द और अर्थ "काव्य" है। ११ काव्यप्रकाशकार मम्मट भट्टके मतमें- । 'तददोषौ शब्दाऽर्थौ सगुणावनलसकती पुनः काऽपि ।'
SR No.023456
Book TitleSahityadarpanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma Negmi
PublisherKrushnadas Academy
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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