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हो गया है। "अलकरणमलङ्कारः" ऐसी व्युत्पत्तिसे "भावे" इस सूत्रसे भावमें घन् प्रत्यय होकर "अलकार" शब्द साहित्यविधाका बाचक होता है ।
अलक्रियेते शब्दाऽर्थावनेनेत्यलङ्कारः। . इस व्युत्पत्तिसे करणमें घञ् प्रत्यय करनेसे "अलङ्कार" शब्द अनुप्रास और उपमा आदि शब्द और अर्थके अलङ्कारका वाचक होता है। इस प्रकार हम साहित्य और काव्यको समानाऽर्थक और अलङ्कार, अलम्कारशास्त्र, साहित्यविद्या भोर काव्यशास्त्र इनको पर्यायवाचक पाते हैं।
अब कास्यपदकी न्युत्पत्ति करते हैं काध्यशब्दकी प्रकृति कविशब्द हैं। यह पद अदादिगणस्थ "कु शन्दे" इस धातुसे "कोति" इस व्युत्पत्तिसे 'अच इ." इस सूत्रसे इ प्रत्यय कर निष्पन्न होता है। भ्वादिस्य "कुङ् शब्दे' इस धातुसे भी यह पद निष्पन्न होता है, परन्तु भ्वादिस्थ कुङ धातुः अव्यक्त शब्दमें है अतः प्रकृतमें पूर्वोक्त अदादि गणस्थ घासुसे कविशब्द निष्पन्न होता है, अतः जो रमणीय अर्थके प्रतिपादक शब्दोंका उच्चारण करता है वह "कवि" कहा जाता है यह सिद्ध होता है। "कवेर्मावः कर्म वा काव्यम्" ऐसी व्युत्पत्ति कर कवि शन्दसे “गुणवचनब्राह्मणादिभ्यः कर्म च” इस सूत्र से ज्यन् प्रत्यय होकर काव्यशब्द निष्पन्न होता है, अर्थात् कविके भाव वा कर्मको "काव्य" कहते हैं। यह हुआ व्युत्पत्तिलभ्य काव्य शब्दका अर्थ । कान्यके लक्षणके विषयमें विद्वानोंका बहुत मतभेद देखा जाता है। १ व्यासमुनिने अग्निपुराणमें काव्यका लक्षण किया है
"काव्यं स्फुटदलङ्कारं गुणवदोषवर्जितम् ।” ३३७ अ० । अर्थात् स्फट अलङ्कार और गुणसे युक्त दोषरहित अभीष्ट अर्थसे युक्त पदावलीको ''काव्य" कहते हैं। २ कान्याऽलङ्कारकार भामहके मतमें
_ "शब्दाऽर्थो सहितौ काव्यम्" अर्थात् सम्मिलित शब्द और अर्थ काव्य है । ३ काव्यादर्शकर्ता दण्डीका मत
. "शरीरं तावदिष्टाऽर्थव्यवच्छिन्ना पदावलो। काव्यम्" पूर्वोक्त अग्निपुराणके लक्षणके ही समान है। . ४ काव्याऽलकार सूत्रके रचयिता वामनके मतमें
"काव्यं ग्राह्यमलढारात्" १-१-१ इस सूत्रके अनुसार गुण और अलङ्कारसे संस्कृत शब्द और अर्थ ही काव्य है । ५ काव्याऽलङ्कारके उद्भट लेखक रुद्रटके मतमें
"शब्दाऽर्थों काव्यम्"