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अर्थात् दोषरहित, गुणसहित और अलङ्कारसे अलङ्कृत शब्द और अर्थको "काव्य" कहते हैं: हाँ, वह शब्दाऽर्थ युगल कहीं स्फुट अलङ्कारसे रहित हो तो भी कुछ हर्ज नहीं ।
१२ प्रतापरुद्रीकार विद्यानाथके मतमें
"गुणाऽलङ्कारसहितौ शब्दाऽर्थो दोषवर्जितौ । "काव्यं काव्यविदो विदुः ॥"
अर्थात् गुण और अलङ्कारसे सहित, दोषसे वर्जित, शब्द और अर्थको काव्यके जानकार "काव्य" जानते हैं ।
१३ काव्यानुशासनकार वाग्भटके मतमें
" शब्दाऽर्थो निर्दोषौ सगुणौ प्रायः साऽलङ्कारौ काव्यम् ॥
अर्थात् दोषरहित, गुणसहित और प्राय: ( अकसर ) अलङ्कारसे अलङ्कृत शब्द और अर्थ "काव्य" माना गया है।
१४ कविकुलशेखर राजशेखर अपनी काव्यमीमांसा में लिखते हैं
"गुणवदतं वाक्यमेव काव्यम्" ।
अर्थात् गुणविशिष्ट और अलङ्कारसे अलङ्कृत वाक्य ( पदसमूह ) ही "काव्य है । १५ वाग्मटाऽलङ्कारके कारक वाग्भटके मतमें-
"साधुशब्दाऽर्थसन्दर्भ गुणाऽलङ्कारभूषितम् । स्फुटरीतिरसोपेतं काव्यं कुर्वीत कीर्तये ॥
१-२
अर्थात् गुण और अलङ्कारसे भूषित, स्फुट रीति और रससे युक्त साधु शब्दाऽर्थगुम्फको "काव्य" कहते हैं, कवि अपनी कीर्तिके लिए उसकी रचना करे ।
१६ "काव्यानुशासन" के कर्ता हेमचन्द्रके मतमें—
"अदोषौ सगुणौ सालङ्कारौ च शब्दार्थों काव्यम्" ।
अर्थात् दोष से रहित गुण और अलङ्कारसे सहित शब्द और अर्थको "काव्य" कहते हैं ।
१७ चन्द्रालोकके निर्माता जयदेवके मत में -
"निर्दोषा
लक्षणवती सालङ्काररसाऽनेकवृत्तिर्वाकू
अर्थात् श्रुतिकटु आदि दोषसे रहित, अक्षरसंहति आदि लक्षणसे सहित, पाचाली आदि रीति से युक्त, श्लेष, प्रसाद आदि गुणसे भूषित, अनुप्रास और उपमा आदि अलङ्कार सहित एवं शृङ्गार आदि रस तथा मधुरा आदि और उसी तरह अभिधा आदि वृत्तियोंसे युक्त शब्दको "काव्य" कहते हैं ।
सरी तिर्गुणभूषणा ।
"काव्यनामभाकू ।" १-७