________________ षष्ठः परिच्छेदः 579 .. भाषाविभाषाभूयिष्ठं भारतीकैशिकीयुतम् / / 288 // असूत्रधारमेकाङ्क सवीथ्यङ्गं कलान्वितम् / श्लिष्टनान्दीयुतं ख्यातनायिकं मूर्खनायकम् // 289 // उदात्तभावविन्याससंश्रित चोत्तरोत्तरम् / इह प्रतिमुखं सन्धिमपि केचित्प्रचक्षते // 290 // .. यथा-मेनकाहितम् / ( युक्तम् ) / भाषाविभाषाभूयिष्ठ = भाषाविभाषाभ्यां ( संस्कृतप्राकृतभाषाभ्याम् ) भूयिष्ठम् ( प्रचुरम् ) / भाषाविभागो यथा भाषाऽर्णवे "भाषां मध्यमपात्राणां नाटकादौ विशेषतः / महाराष्ट्री शौरसेनीत्युक्ता भाषा द्विधा बुधैः / / हीनर्भाष्या विभाषा स्यात्सा च सप्तविधा स्मृता। प्राच्याऽऽवन्ती मागधी च शाकारीच तयाऽपरा / चाण्डाली शाबरी चैव तथाऽमीरीति भेदतः // " भारतीकशिकीयुत भारतीकशिकीभ्यां (वत्तिभ्याम् ), युतम् // 28 // असूत्रधार=सूत्रधाररहितम्, एकाङ्कम् - एकोऽहो यस्मिस्तत् / सबीप्यमं- . वीथ्यङ्गः ( उद्धाल्यकादिभिः ) सहितम् / कलान्वितं = कलामिः ( नृत्यगीतादिभिः) अन्वितम् ( युक्तम् ) / श्लिष्टनान्दीयुतंश्लिष्टा (श्लेषयुक्ती ) या नान्दी (स्तुति. विशेषरूपा), तया युतम् / ख्यातनायिकख्याता (प्रसिद्धा) नायिका यस्मिस्तत् / मूर्खनायक मूर्खः ( बालिशः ) नायको यस्मिस्तत् // 289 // उत्तरोत्तरम्-उत्तरस्मात उत्तरम्, उदात्तेत्यादिः = दातमावस्य (नापिका. महत्त्वस्य ) यो विन्यासः ( संस्थितिः ), तसंश्रितम् (तत्समन्वितम् ) / तादृशमुप. रूपकं रासकं स्यात् / इह-अस्मिन रासके, केपित = बावार्याः, प्रतिमुख सन्धिमपि, प्रचक्षते वदन्ति / / 290 // यथा- मेनकाहितम् / . यह संस्कृत और प्राकृत भाषासे परिपूर्ण होता है / इसमें भारती और कैशिकी बत्ति रहती है / / 288 // ___ इसमें सूत्रधार नहीं होता है, एक अङ्क होता है, वीपीके उदात्यक आदि अङ्ग रहते हैं / नृत्य गीत बादि कलाएं होती हैं। इसमें श्लेषयुक्त नान्दी होती है / नायिका प्रसिद्ध होती है, नायक मूर्ख होता है / / 289 // उत्तरोत्तर नायिकाके महत्वकी स्थिति इसमें बरसाई जाती है। इसमें कुछ विद्वान् प्रतिमुख सन्धिको भी प्रतिपादित करते हैं // 29 // जैसे-मेनकाहित।