________________ 578 साहित्यदर्पणे यथा-यादवोदयम् / अथ प्रेक्षणम् गभविमर्शरहितं प्रेङ्खणं हीननायकम् / असूत्रधारमेकाङ्कमविष्कम्भप्रवेशकम् // 286 // नियुद्धसम्फेटयुतं सर्ववृत्तिसमाश्रितम् / नेपथ्ये गीयते नान्दी तथा तत्र प्ररोचना // 287 // यथा-वालिवधम्। अथ रासकम् रासकं पञ्चपात्रं स्यान्मुखनिर्वहणान्वितम् / यथा-यादवोदयम् / प्रेखणं लक्षयति-गर्भविमर्श ति। गर्भविमर्शरहितं = गर्भविमर्शाभ्यां (तृतीयचतुर्थसन्धिभ्याम् ) रहितम् (शून्यम्), मुखप्रतिमुखनिर्वहणसंधियुतमिति भावः / हीननायकम् = हीनः ( अधमः ) नायकः ( नेता ) यस्मिस्तत् / असूत्रधार-सूत्रधाररहितम् / एकाऽङ्कम् = एक एव अङ्कः यस्निस्तत् / अविष्कम्भप्रवेशकं = विष्हम्मकप्रवेशकाख्याभ्यामर्थोपक्षेपकाभ्यां रहितम् // 286 // . नियद्धति। नियुद्धसम्फेटयुतं = नियुद्धेन ( बाहयुद्धन ), सम्फेटेन ( रोष. भाषणेन ) च युतम् ( सहितम् ) / सर्ववृत्तिसमाश्रितं = सर्वाभिः (सकलाभिः ) वृत्तिभिः (कैशिक्यादिभिश्चतुःसंख्यकाभिः) समाश्रितम् (संयुक्तम् ) तादृशमुपः रूपकं प्रेङ्खणं स्यात् / नान्दी - "आशीर्वचनसंयुक्ता" (394 पृ० ) इत्यादि लक्षणलक्षिता स्तुतिविशेषरूपा। प्ररोचना = "अत्रोन्मुखीकारः" ( 401 पृ.) इत्युक्त. लक्षणलक्षिता उन्मुखीकाररूपा। नेपथ्ये = वेषपरिवर्तनस्थाने, गीयते = गानविषयी. कियते, केनचिन्नटेनेति शेषः // 287 // रासकं लक्षयति-रासकमिति / पञ्चपात्रं = पञ्च पात्राणि (अभिनेतृजनाः) यस्मिस्तत् / मुखनिर्वहणाऽन्वितं=मुखनिर्वहणाभ्याम् (प्रयमपञ्चमसन्धिभ्याम्) अन्वितम् जैसे यादवोदय / प्रेङ्खण-प्रेङ्गणमें गर्भ और विमर्श सन्धि नहीं होती हैं, हीन नायक होता है / इसमें सूत्रधार नहीं रहता है, एक अङ्क होता है तथा विष्कम्म और प्रवेशक नहीं होते हैं / / 286 // इसमें नियुद्ध (कुश्ती ) और क्रोधपूर्ण भाषण होता है। सब कैशिकी आदि वृत्तियां रहती हैं, नान्दी और प्ररोचना नेपथ्यमें कोई नट गाता है // 287 // जैसे-वालिवध। सिक-रासकमें पांच पात्र रहते हैं, मुख और निर्बहण सन्धियां रहती हैं।