SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 666
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षष्ठः परिच्छेदः उल्लाप्यं बहुसंग्राममस्रगीतमनोहरम् / चतस्रो नायिकास्तत्र त्रयोऽङ्का इति केचन // 283 // शिल्पकाङ्गानि वक्ष्यमाणानि / यथा-देवीमहादेवम् / अथ काव्यम्-. काव्यमारभटीहीनमेकाङ्क हास्यसङ्कुलम् / खण्डमात्राद्विपदिकाभग्नतालैरलंकृतम् // 284 // वर्णमात्राछड्डलिकायुतं शृङ्गारभाषितम् / नेता स्त्री चाप्युदात्तात्र सन्धी आद्यौ तथान्तिमः।। 285 // बहुसंग्राम = बहवः (प्रचुराः ) संग्रामाः ( युद्धानि ) यस्मिस्तत् / अस्रगीतमनोहरम् - अस्रगीतेन ( "उत्तरोनररूपं यत्प्रस्तुताऽर्थपरिष्कृतम् / अन्तर्जवनिक गीतम: स्रगीतं तदुच्यते" "इत्युक्तलक्षणलक्षितेन * गानविशेषेण") मनोहरम् ( रुचिरम् ), तादशमुपरूपकम् "उल्लाप्यं" बोध्यमिति शेषः / तत्र = तस्मिन्, उल्लाप्ये, चतस्रो नायिका भवन्ति / केचन = कतिपये विद्वांसस्तु प्रयोऽङ्का इति वदन्ति // 283 // काव्यं लक्षयति-काव्यमिति। आरटीहीनम् - आरभटया ("मायेन्द्रजालेत्या"दिलक्षणलक्षितया, (488 पृ० ) वृत्या हीनम् ( रहितम् ) / कालिम् = एकोऽङ्को यस्मिस्तत् / हास्यसकुलं-हास्येन ( हास्यरसेन ), सकुलम् ( व्याप्तम् ) / खण्डमात्रेत्यादि.० = खण्डमात्रा द्विपदिका भग्नतालानि = भरतोक्ता गीतविशेषाः, तैः; अलङ्कृतं = भूषितम् // 284 / / वर्णमात्रेति / वर्णमात्राछड्डलिकायुतं = वर्णमात्राछड्डलिके (छन्दोविशेषो); ताभ्यां युतम् (सहितम्) / शृङ्गारभाषितं शृङ्गारेण (शृङ्गाररसेन) भाषितं (भाषणम्) यस्मिस्तत् / तादृशमुपरूपकं काव्यं भवेत् / अत्र नेता = नायकः, उदात्तः-धीरोदात्तः स्त्री योषित, च उदात्ता धीरोदात्तनायिका / तथा च आयो-प्रथमारतीयो, मुखप्रतिमुखे इति भावः, सन्धी / तपा, अन्तिमः-चरमः, निर्वहणम् इति भावः, सन्धिर्भवेत् // 25 // उल्लाप्यमें अनेक युटोंका प्रसङ्ग रहता है / यह असंगीतसे मनोहर होता है। चार नायिकाएं होती हैं और कुछ विद्वान इसमें तीन बहोते हैं ऐसा मानते हैं।॥२८॥ शिल्पकके अङ्ग पीछे कहे जायंगे। शिल्पकका उदाहरण-देवीमहादेव / काव्य-काव्य में आरभटी वृत्ति नहीं होती है, एक अस होता है / यह हास्य रससे व्याप्त होता है / खण्डमात्रा, द्विपदिका और भग्नताल इन गीत विशेषोंसे अलङ्कृत होता है / / 285 // इसमें वर्णमात्रा और छड्डलिका ये छन्द रहते हैं, शृङ्गार रससे पूर्ण भाषण होता है, नायक धीरोदात्त और नायिका भी धीरोदात्ता होती है। मुख, प्रतिमुख और अन्तिम निबंहण ये सन्धियां राती है।। 285 // 37 सा०
SR No.023456
Book TitleSahityadarpanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma Negmi
PublisherKrushnadas Academy
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy