________________ साहित्यदर्पणे अथ गोष्ठीप्राकृतैनवभिः पुभिर्दशभिर्वाप्यलंकृता / नोदात्तवचना गोष्ठी कैशिकीवृत्तिशालिनी / / 274 // हीना गर्भविमर्शाम्यां पञ्चपड्योपिदन्विता / कामशृङ्गारसंयुक्ता सादेकारविनिर्मिता // 275 / / यथा-रैवतमदनिका। अथ सट्टकम्सट्टकं प्राकृताशेषपाठ्यं स्यादप्रवेशकम् / न च विष्कम्भकोऽप्यत्र प्रचुरश्चाद्भुतो रसः // 276 // गोष्ठी लक्षयति-प्राकृतरिति / प्राकृतः साधारणः, नपभिः, वा = अथवा; दशभिः, पुंभिः = पुरुषः, अलङ्कृता = भूषिता। नोदात्तवचना = न विद्यते उदात्तम् ( उत्कृष्टं; संस्कृतमिति भावः ) वचनं यस्यां सा / कशिकीवृत्तिशालिनी, गोष्ठी == उपरूपकभेदः // 274 / / गर्भविमर्शाभ्या = गर्भविमर्शसन्धिभ्यां; हीना = रहिता, मुखप्रतिमुखो. पसंहृतयः सन्धयो गोष्ठयो भवन्तीति भावः / पञ्चषडयोषिदन्विता - पञ्चभिः षड्भिर्वा योपिद्भिः (स्त्रीभिः ) अन्विता ( युक्ता ), तथा कामशङ्गार संयुक्ता = कामशृङ्गारेण (प्रहसनशृङ्गारेण ) संयुक्ता, तथा, एकाऽङ्कविनिर्मिता = एकेनाऽङ्कन विनिर्मिता ( रचिता) गोष्ठी स्यात् / / 275 // सट्टक यक्षयति - सट्टकमिति / प्राकृताऽशेषपाठयप्राकृतं (प्राकृतभाषायाम् ) अशेषं (समस्तम्) पाठय (पठनीयं, गद्यपद्यात्मक वाक्यमिति भाव.) यस्मिस्तत् तथा च अप्रवेशकम् अविद्यमानः प्रवेशको यस्मिस्तत, प्रवेशकरहितमिति भावः / तादृशमुपरूपकं सट्टक, स्यात् / अत्र-सट्टके. प्रवेशको न, अद्भुतो रस प्रचुरो भवति / / 276 // गोष्ठी-साधारण वो वा दश पुरुषोंसे अलङ्कत, इसमें संस्कृतकी उक्ति नहीं रहती है, और कंशिकी वृत्ति होती है // 274 // यह गोष्ठी गर्भ और विमर्श सन्धिसे रहित होती है, पांच छः स्त्रियाँ रहती है। कामशृङ्गार (प्रहसनमार )से युक्त या एक असे रचित होती है / / 275 // जैसे रेवतमदनिका पादि। सहक-जिसमें समस्त पाठ्य अंश प्राकृत भाषामें रहता है और प्रवेशक बोर विष्कम्भक नहीं रहते हैं। बदभुत रस प्रचूर होता है / / 276 //