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ग्रन्योंकी संख्या ७५ है। ये सनातन धर्मके प्रसिद्ध व्याख्याता थे। इन्होंने स्वामी दयानन्दके जीवन काल में ही उनके ग्रन्थों में व्याकरणकी त्रुटियोंका निदर्शन कर उन्हें निरुत्तर कर दिया था, और मूर्तिपूज', अवतारवाद आदि शास्त्रीय विषयोंमें शास्त्रीय और तकपूर्ण ग्रन्थ लिखे थे।
६. भागवतमञ्जरी. कवि- साहित्याचार्य विद्याभूषण कुलचन्द्र गौतम, समयवि० सं० १९६९-२०११, भागरतमञ्जरी, कवीन्द्र क्षेमेन्द्रकी भारतमञ्जरीकी सदृश रचना है । इसमें श्रीमद्भागवतस्थ कथाका लालित्यपूर्ण, अलङ्कृत और प्राञ्जल वर्णन है। इसके सिवाय कविजीने गङ्गागौरव, श्रीकृष्णकर्णामृत और हरिवरिवस्था आदि अनेक काव्य लिखे थे।
७, आदर्शराघव-पुष्पाञ्जलि, प्रकाशन समय वि-सं०२००५.कवि-पण्डितराजसोमनाथ सिग्याल, जन्म सं० १९४० । इस लघु कवितासंग्रहमें आध्यात्मिक काण्ड, आधिदैविक काण्ड और आधिभौतिक काण्ड ये ३ काण्ड हैं। प्रति काण्डमें तत्तत स्तबकोंमें बहुत-से पद्य संदीत है। भक्तिरससे ओतप्रोत, साऽलङ्कार, सरस और प्रढ ये पद्य अत्यन्त मनोहर और आकर्षक हैं । नेपालके प्रसिद्ध वेदान्ती अध्यापक ५० जगन्नाथशर्माके ज्येष्ठपुत्र सोमनाथ शर्माजी अपने पिता, प्रसिद्ध बयाकरण ५० विष्णुहरि रिमाल-म०म०लाश चन्द्रभट्टाचार्य और म०म०गङ्गाधरशास्त्रीके शिष्य, एवम् न्यायोपाध्याय और काव्यतीर्थ आदि उपाधियोंसे विभूषित थे । वे नेपालके राजकीय संस्कृत पाठशालाके प्रधानाध्यापक, राजकीय संस्कृत महाविद्यालयके प्राचार्य एवम् नशा प्रज्ञाप्रतिष्ठान (नेपाल राजकीय एकेडेमी) के सदस्य थे । लगभग बाधी शताब्दी तक अध्यापनरत होकर आपने साहित्य, सांख्य, सर्वदर्शन, वेदान्त और धर्मशास्त्रमें कई छात्रोंको पढ़ाकर काशी में शिवसायुज्य प्राप्त किया । आपके अन्यग्रन्थ-प्रतिसंस्कृता सिद्धान्तकौमुदी (व्याकरण में ), नेपाली भाषामें बादशराघव महाकाव्य, मध्यचन्द्रिका और लघुन्द्रिका ( व्याकरणमें ) साहित्यप्रदीप बोर अनुगदचन्द्रिका आदि अनके ग्रन्थ हैं । हालहीमें नेपालमें. बापका शताब्दीसमारोह धूमधामके साथ मनायागया।
८. पारिजातहरण, कवि- उमापति द्विवेद कविपति, अन्य प्रकाशनकाल ख० सं० १९५८ हरिवंशके कथानकपर इस मनोरम महाकाव्यका निर्माण हुआ है। ... ५. रुक्मिणीहरण, कवि-श्रीकाशीनाथ द्विवेदी, ग्रन्थप्रकाशनकाल-५० सं० १९६६, श्रीमद्भागवतके वाधारपर यह मनोहर काव्य निर्मित है।
१०. भारतीवैभव, गणेशगौरव और ऊर्मिमाला ( फुटकर कवितासंग्रह)। कवि-माधवप्रसाद देवकोटा स्मृति शास्त्री, सांख्ययोगाचार्य कविरत्न, पूर्वकाव्यनिर्माणकाल वि० सं० २०१० उक्त तीनों काव्य प्रौढ, अलङ्कारसंपन्न और मनोहर हैं ।
११. सत्यश्निन्द्र महाकाव्य, कवि-मीमांसाचार्य प.पूर्णप्रसाद ब्राह्मण, ४ सा० भृ