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( ४७ ) ब्याकरणमें काशिकाके ढंगपर अष्टाध्यायीका व्याख्यान "व्याकरणसिद्धानसुधानिधि" विशाल ग्रन्थ है। अद्वैतवादका खण्डनग्रन्थ तर्ककुतूहल और न्यायमें दीधिति प्रवेश ।
३३ अलङ्काररत्नाकर, कर्ता--कवि शोभाकर मित्र, समय-सं० १२५० मे १३५० के बीच। अलंकाररत्नाकरके कर्ता कवि श्रीशोमाकरमित्र त्रयीश्वरमित्रके तुम थे । इस ग्रन्थ में सूत्र, वृत्ति और उदाहरण हैं । मङ्गलाचरणके अनन्तर इसमें ११२ सूत्र हैं । यहा आरम्भके छः सूत्रोंमें शब्दालंकारके अनन्तर १०४ अर्थाऽलकारोंकी बड़ी प्रौढिसे निरूपण किया गया है । इन्होंने कई नये अलंकारोंका उद्भावन भी किया है ।
३४ काव्यविलास, कर्ता-चिरन्जीव भट्टाचार्य, समय-ई० १७०३ चिरजीव भट्टाचार्य विद्वदर राघवेन्द्र के पुत्र थे । इनका नाम वामदेव वा रामदेव भी था। इसके ग्रन्थ काव्यविलासमें दो भङ्गियो ( परिच्छेद ) हैं । प्रथम मङ्गिमें मङ्गला. चरणके अनन्तर काव्यस्वरूपनिरूपण, काव्यप्रयोजन, काव्यकारण, शृङ्गार आदि रसोंके स्थायी भाव, इसके कारणभूत विभावके दो भेद, कार्यभूत अनुभाव, व्यभिचारी भाव, संयोगशृङ्गार और विप्रलम्भ शृङ्गारके दो भेद. हास्य, करुण, रौद्र और वीररस, उसके ३ भेद, भयानक, बोभत्स, अद्भुत और शान्तरस, इनके स्वरूप और देवताएं, मायाके दामरस:वका खण्डन । विप्रलम्भ शृङ्गारका करुणरसमें अन्तर्भाव आदिका खण्डन, और भावकाव्य आदि सोदाहरण वणित हैं।
द्वितीय भङ्गिमें अलकारका लक्षण, अर्यालंकार सौर शब्दालंकारका उद्देश, उपमासे लेकर अत्युक्तिनक ८९ अर्थालकार और शब्दालंक रोंमें चित्र, ४ अनुप्रास, यमक, पुनरुक्त प्रतीकाण इस प्रकार ७ अलंकार सलक्षण और सोदाहरण निरूपित हैं।
चिरजीव भट्टाचार्यके अन्य ग्रन्थ निम्नलिखित हैं१ माघवचम्मू (प्रकाशक-जीवानन्दविद्यासागर, कलकत्ता)। २ विद्वन्मोदतरङ्गिणी चम्पू (प्रकाशक-वेङ्कटेश्वर प्रेस, बम्बई )। ३ शृङ्गारतटिनी। ४ वृत्तरत्नावली (छन्द.शास्त्र ) ।
३५ वृत्तालबार, कर्ता-छबिलाल सूरि, समय-वि० सं० १९३८-१९६७ । वृत्तालङ्कारमें कतिपय छन्द और अलङ्कारों के लक्षण और स्वकृत मनोरम उदाहरण वर्णित है । इनके अन्य पन्ध कुशलवोदय और सुन्दरचरित नाटक; और विरक्तिः तङ्गिणी खण्डकाव्य आदि हैं। ये नेपालनरेश श्री ५ पृथ्वीवीरविक्रमशाहके शासन कालमें सरदार उपाधियुक्त होकर शासन कार्य में नियुक्त थे और तपम्बीके समान जीवन बिताते थे । प्रो० मैक्समूलरने इनकी रचना की भूरिप्रशसा और संस्कृत लिखने. में अपनी असमर्थताका प्रकाश किया थ! ।