________________
(४६) २१ अलङ्कारकौस्तुभ, कर्ता-कवि कर्णपूर, समय-ई. १५२४ के अनन्तरये कवि कर्णपूर ग कर्णपूर गोस्वामी पहले "परमानन्दसेन" नामसे प्रसिद्ध थे। ये चैतन्य महाप्रभुके शिष्य शिवानन्द सेनके पुत्र और गुरु श्रीनाथके शिष्य थे।
अलङ्कारकौस्तुभमें किरणोंकी संख्या दश है। इसके प्रथम किरणमें काव्यका लक्षण, द्वितीयमें शब्द और अर्थ, तृतीयमें ध्वनि, चतुर्थ में गुणीभूतमझ्य, पञ्चममें रस, भाव और उनके भेद, षष्ठमें गुण, सप्तममें शब्दाऽलङ्कार, अष्टममें अर्थाऽलङ्कार, नवममें रीति और दशम किरणमें दोषोंका निरूपण है । यह ग्रन्थ रूपगोस्गमीके उज्ज्वलमणिसे अधिक विस्तृत है। इसके उदाहरणमें राधा और कृऽपकी स्तुतियाँ अधिक हैं । अलङ्कारकौस्तुभमें उज्ज्वलनीलमणिका अनुकरण किया गया है। इस ग्रन्थपर चार टीकाएँ, उनमें प्रथम उन्होंकी किरण टीका है । द्वितीय विश्वनाथ चक्रवर्ती ( ई० १८८५) की सारबोधिनी है । तृतीय वृन्दावनचन्द्र चक्रवर्तीको दीधितिप्रकाशिका और चतुर्थ लोकनाथ चक्रवर्ती की टीका प्रख्यात है ! अलका रकौस्तुभके सिवाय कवि कर्णपूरके अन्य ग्रन्थ इस प्रकार हैं
१ चैतन्यचन्द्रोदय (नाटक) । २ गोराङ्गगणोद्देशदीपका । ३ आनन्दवन्दावनचम्पू । ४ उक्त चम्पूकी टीका चमकार जन्द्रिका । ५ बृहत्कृष्णगणोद्देशदीपिका । ६ वणरकाश ( कोषग्रन्थ )
३२ अलङ्कारकौस्तुभ, कर्ता-विश्वेश्वर पर्वतीय, समय- ई० अठारहवीं शताब्दी । लक्ष्मीघ के पुत्र विश्वेश्वर पण्डित सवंतन्त्रस्वतन्त्र विद्वान थे । ये उत्तर प्रदेशके अल्मोड़ा जिले के निवासी थे; इन्होने भी भव्य न्यायकी शैलीपर अलंकारशास्त्रका ग्रन्थ लिखा है । अलंकारकौस्तुभपर इन्होंने स्वयम् टीका लिन्द्री है, ..! रूपक अलंकार पर्यन्त उपलब्ध है । काव्य प्रकाशमें वणित ६१ अलंकारोंका इन्होंने पाण्डित्य. पूर्वक विवेचना कर अन्य अलंकारोंका उन्हीमें अन्नाव किया है । इन्होने रुय्यक, शोभाकर मित्र विश्वनाथ कपिराज, अप्पय्य दीक्षित, पण्डितराज जगन्नाथ, इनके मतोंका कई जगह खण्डन किया है। अन्य के उदाहरणोंके लिए इन्होंने स्वरचित मनोहर पद्य दिये हैं. ये ग्रन्थके अन्त में लिखते हैं ---
"अन्यरुदीरितमलंकरणान्तरं यत् काव्यप्रकाशकथितं तदनुप्रवेशात् । सक्षेपतो बहुनिबन्धविभावनेनाऽलंकारजातमिह वारुतया न्यरूपि ॥" इनके अलका में अन्य ग्रन्थ इस प्रकार हैं
अलंकारप्रदीपः अलंकारमुक्तावली, कवीन्द्रकर्णाऽऽरण, यह चित्र काव्य है तथा धर्मदासमूरिक विदग्धमुखमण्डनके अनुरूप ही नहीं उससे अधिक पाण्डित्यपूर्ण है। काव्यतिलक ग्सचन्द्रिका और उसको टीका व्यङ्गयाऽर्थ कौमुदी।' रसचन्द्रिकामें उनकी एक अन्य पुस्तक शृङ्गारमञ्जरीका भी उल्लेख है।