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________________ ( ४४ ) नामक ग्रन्थकी, काव्यप्रकाशकी उदाहरणचन्द्रिका और काव्यप्रदीपकी "प्रमा" नामक टीकाकी भी रचना की है। आधुनिक विद्वान् जग्गू वेडकटाचार्यकी "कुवलयानन्द चन्द्रिकाचकोर" नामकी टीका आलोचनात्मक और प्रौढ है। ३० रसगङ्गाधर, कर्ता--जगन्नाथ पण्डितराज, समय-ई० १६२०-१६६० व्याकरणमें महाभाष्य, नव्यन्यागमें तत्त्वचिन्तामणि और वेदान्त में शाङ्करभाष्यको जैसी प्रतिष्ठा है वैसे ही अलङ्कारशास्त्रमें जगन्नाथ पण्डितरा के रसगङ्गाधरकी भी है । ये पेरुभट्टके पुत्र और शिष्य तथा लक्ष्मीके गर्भज थे। इनके पिताने काशीमें ज्ञानेन्द्र भिक्षुसे वेदान्तका महेन्द्रसे वैशेषिक और न्यायका और खण्डदेवसे मीमांसाका अध्ययन किया था रसगङ्गाध में ऐसा लिखा है। दिल्लीके मुगल बादशाह शाहजहांने इन्हें "पण्डितराज" पदवीसे विभूषित किया था, उसके पुत्र दाराशिक'इने इनसे अध्ययन किया था। इन्होंने दिल्ली में अपना यौवन बिता दिया था । अनेक शास्त्रोंके अध्ययनसे परिणतमस्तिष्क पण्डितराज जगन्नाथने नव्यन्यायकी शैलीसे रसगङ्गाधरकी रचना को है । इन्होंने अपने ग्रन्थमें कई स्थानोंमें प्राचीन विद्वानोंको कड़ी आलोचना की है। उनमें भी अप्पय्यदीक्षितकी धज्जी उड़ाई है। इस प्रसङ्गमें कहीं-कहीं मर्यादा और युक्तिका व्यतिक्रम भी हुआ है। भट्टोजिदीक्षितकी प्रौढमनोरमाकी इन्होंने 'मनोरमाकुचदिनी" नामक ग्रन्यसे खण्डन भी कर डाला है। ये यवनी स्त्री के प्रणयी थे ऐसी किंवदन्ती प्रसिद्ध है, पर इसमें कुछ भी प्रमाण नहीं है । इनकी प्रतिष्ठा और पाण्डि-पसे अभिभूत होकर असूयापरवश पण्डितोंने यह मिथ्या प्रचार किया है। इन्होंने . मथुरापुरीमें देहत्याग किया था। रसगङ्गाधरमें ५ आनन होने चाहिए पर दुर्भाग्य से दो ही आनन अधूरे रूपमें उपलब्ध हैं। यह ग्रन्थ पूरा होता तो अलङ्कार गास्त्रके कई मौलिक और महत्त्वपूर्ण विषय उपलब्ध होते । तो भी इसमें जितने अंश विद्यमान हैं, उतनेसे भी बहुनसे साहित्यिक तत्त्वोंके मानदण्ड · इसमें उन्नत किये गये हैं। रसंगङ्गाधरमें सूत्र, वृत्ति और उदाहरण हैं। उनमें तीनों अगर के अपने हैं । उदाहरणके विषयमें उन्होंने लिखा है"निर्माय नूतनमुदाहरणाऽनुरूपं काव्यं मयाऽत्र विहितं, न परस किश्चित् । किं सेव्यते सुमनसां मनसाऽपि गन्धः कस्तूरिकाजननशक्तिभृता मृगेण १" ।। अर्थात् इस ग्रन्थमें उदाहरणके योग्य नये काव्यकी मैंने रचना कर रखी है, दूसरोंकी कुछ नहीं रखी है। कस्तूरी उत्पन्न करनेकी शक्तिवाला मृग फूलोंके गन्धका मनसे मी क्या सेवा करता है ? इस प्रकार हम देख रहे हैं पण्डितराज जगन्नाथ आत्माऽ. पिमानी और महान् आलङ्कारिक होनेसे अपनी सानी नहीं रखते थे। रसगङ्गाधरके प्रथम आननमें मङ्गलाचरणके अनन्तर इन्होंने सबसे विलक्षण काव्य का लक्षण लिखा है । ये शब्द और अर्थको नहीं केवल शब्दको काव्य मानते हैं। इस प्रकार वे ग्रन्थके आरम्भमें ही मम्मट और विश्वनाथके मतोंका खण्डन करते हैं । पण्डितर।जने प्रतिभाको
SR No.023456
Book TitleSahityadarpanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma Negmi
PublisherKrushnadas Academy
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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