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किवदन्ती है। उनमें अलङ्कारशास्त्रमें वृत्तिवार्तिक, चित्रमीमांसा और कुवलयानन्द हैं । इनके सिवाय प्रसिद्ध और इनके प्राप्यग्रन्थ इस प्रकारसे हैं-१ सिद्धान्तलेशसंग्रह, ब्रह्मसूत्रकी टीका न्यायाऽमणि, विशिष्टाऽद्धतमें नयमयूख मालिका, वेङ्कटदेशिकके यादवाऽभ्युदय महाकाव्यकी टीका, शैवविशिष्टाऽद्वैत में शिक्षाकमणिदीपिका ग श्रीकण्ठ. भाष्य, माध्ववेदान्तमें ब्रह्मसूत्रकी व्याख्या न्यायमुक्कावलि, मीमांसामें विधिरसायन और उसकी सुखबोधिनी टीका, व्याकरणमें वादनक्षत्रावलि, रामायणतात्पर्यनिर्णय और महाभारततात्पर्यनिर्णय, प्राकृतव्याकरणमें प्राकृतचन्द्रिका, वेदान्त लादि दर्शनों का संग्रह ग्रन्थ मतसारसंग्रह, कोषमें नाम ग्रहमाला इत्यादि ।
१ वृत्तिवार्तिक-इसके दो ही परिच्छेन उपलब्ध हैं, अत: यह ग्रन्थ अधूरा है। इसमें रूढि योग और योगरूढि ३ प्रकारकी अभिधाएँ, लक्षणाके ४ और शब्दशक्तिके - २ भेदोंका निरूपण है। लक्षगाके रद्धा और गौणी २द दिये गये हैं, और प्रत्येक अनेक भेदोंका उल्लेख है।
२चित्रमीमांसा : इसमें कारिकाएं और उनकी वृत्ति है। इसमें पहले ध्वनि, गुणीभूतव्यङ्गय और वित्र इस प्रकार काव्यके ३ भेदोंका प्रतिपादन किया गया है। अव्यङ्गय काव्यके शावर और जयचित्र इन दो भेदोंमें अर्थचियका ही इसमें विशेष प्रतिपादन है। इसमें उग्मा आश्रित २२ अलङ्कार निरूपित हैं । अलङ्कारप्रकरण अतिशयोक्तिपर्यन्त हैं। इस प्रकार यह ग्रन्थ भी अधूरा है। जगन्नाथ पण्डित राजने "चित्रमीमांसाखण्ड" नामक खण्डनग्रन्थ लिखा है, वह भी अपहनुति तक ही उपलब्ध होनेसे अधूरा ही प्रतीत होता है। चित्रमीमांसामें घशानन्दको सुश और बालकृष्ण पायगुण्डे की गढाऽर्थ प्रकाशिका ये दो टीकाएं प्रसिद्ध हैं।
६ कुवलयानन्द । यत्र ग्रन्थ वेङ्कट सिके आदेशसे निर्मित है, इसमें अलखारोंका विशद वर्णन है। इसका आधार जयदेवनिर्मित चन्द्रालोकका पञ्चम मयूख है, जैसा कि इन्होंने लिखा है--
__ "येषां चन्द्रालाके दृश्यन्ते लक्ष्यलक्षणश्लोकाः।
प्रायत एव तेषामितरेषां त्वभिनवा विरध्यन्ते ॥" अर्थात् इसमें जिन-जिन लहारोंके चन्द्रालोकमें लक्ष्य और लक्षणोंके श्लोक देखे जाते हैं प्रत्र: वे ही, और अन्य अलङ्कारोंके तो नये लक्ष्यलक्षण-श्लोक रचे जाते हैं। इस प्रसार इन्द्रालकको कारिकाओंका कहीं कहीं परिवर्तन, और परिवईन कर अध्ययपदीक्षितने प्रौढतापूर्वक व्याख्या की है, उदाहरण अस ग्रन्थोंसे दिये गये हैं। कुवलयानन्दमें चन्द्रालोकके उपमा आदि मौ अलङ्कार देकर १५ अन्य अलङ्कारोंका भी समावेश किला गया है। कुवलयानन्दको ९ टीकाएँ हैं, उनमें आशाधरभट्टकी अलङ्कारदीपिका और द्रविडदेशके रामचन्द्रपुत्र वैद्यनाथ तत्सत्की अलङ्कारचन्द्रिका टीका प्रसिद्ध हैं। आशाधरभट्टने वृत्तिनिरूपणपर "कोविदानन्द" और "त्रिवेणिका"