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अतिरिक्त इनके विदग्ध माघव ( नाटक ), उत्कलिकावल्लरी, नाटकचन्द्रिका, वैष्णवतोषिणी ( व्याकरण ) और 'पद्यावलि" नामक स्तोत्रों और सुभाषितोंका संग्रह ग्रन्थ भी हैं ।
वैष्णव संप्रदाय के "उज्ज्वलनीलमणि" नामक अलङ्कारशास्त्रमें उज्वल रस अर्थात् राधा और कृष्ण के शृङ्गाररसका विश्लेषण किया गया है। इसमें नायकके ९६ भेद दिखलाये गये हैं और नायकके चेंट विट, विदूषक, पीठन और प्रियसख आदि सहचर प्रदर्शित हैं। कृष्णकी स्वकीया नायिकाओंकी सख्या १६१०८ है, वे सब द्वारकानिवासिनी हैं । इसमें भक्तिरसका विस्तृत वर्णन है। सभी उदाहरण रूपगोस्वामीने अपने ग्रन्थोंसे दिये है । उज्ज्वलनीलमणिमें रूपगोस्वामीके भतीजे जीवगांस्वामीसे निर्मित लोचनरोचनी और विश्वनाथ चक्रवर्ती रचित आनन्दचन्द्रिका प्रसिद्ध टोकाग्रन्थ हैं ।
नाटकचन्द्रिका नाट्यशास्त्रपरक ग्रन्थ है, इसमें ८ प्रकरण हैं । यह ग्रन्थ मुलिका अनुयायी नही है ।
२८ अलङ्कार शेखर, कर्ता - केशवमिश्र, समय - ई० १६ शताब्दीका उत्तरार्द्ध । वे शनि मैथिल ब्राह्मण थे। इन्होंने अलङ्कार शेखर को राजा माणिक्यचन्द्रकी प्रेरणा से लिखा है । केशवमिश्र ने अपने ७ अलङ्कार ग्रन्थोंका उल्लेख किया है, जिनमें अलङ्कारसर्वस्व और वाक्यरत्न वा काव्यरत्न, इनका नाम से निर्देश किया है । अलङ्कारशेखर में कारिका, वृत्ति और उदाहरण हैं, इनके कथनके अनुसार कारिकाके रचयिता कोई "शौद्धोदन" नामके विद्वान् थे । अलङ्कारशेखर में ८ रत्न और २२ मरीचियाँ हैं । प्रथम मरीचिमें काव्यका लक्षण और हेतु, द्वितीय में ३ रीतिया, उक्ति और मुद्राके प्रकार, तृतीय में शब्दके ३ व्यापार, चतुर्थ में ८ पददोष, पञ्चममें १२ वाक्यदोष, षष्ठमें ८ अर्थदोष, सप्तम में ५ शब्दगुण, अष्टम में ४ अर्थगुण, और नव में कतिपय दोपोका गुणरूप से निरूपण, दशम में ८ शब्दालङ्कार, एकादशमे १४ अर्था ऽलङ्कार, द्वादशमे रूपकके भेद, त्रयोदश में अन्य अलङ्कार, चतुर्दशमें नायकनिरूपण, पञ्चदशमे कविसमयका निरूपण और सादृश्यवाचक शब्द षोडश में विषयनिरूपण, सप्तदश में प्रकृति के अनेक पदार्थों का वर्णन, अष्टादश में संख्यावाचक शब्दोंका निरूपण, एकोनविंश में समस्या पूरण, विशमें ९ रस, नायक और नायिकाका भेद उपभेद तथा विभिन्न भाव और एक विश में रसदोष और द्वाविंश में रसपोषक वर्ण निरूपित हैं ।
वृत्तिवाति आदि ३ ग्रन्थ, कर्ता - अप्पय्यदीक्षित, समय - ई० १.२० - १५९३ अप्पय्यदीक्षित रङ्गनाथ अध्वरीके पुत्र थे, इनका नाम कहीं-कहीं अप्पयदीक्षित और अप्पदीक्षित भी देखा जाता है। ये राजा वेङ्कटपतिके आश्रित महान् विद्वान् थे । मधुसूदन सरस्वतीने इनके लिए "सर्वतन्त्र स्वतन्त्र " ऐसे पदसे उल्लेख दिया है ! अप्पय्यदीक्षित महावैयाकरण भट्टोजिदीक्षित के गुरु थे । इनके चित १०४ ग्रन्थ हैं ऐसी