SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 427
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३३८ साहित्यदपणे द्वावप्येतो पदगतत्वेन वाक्यगतत्वेन च पुनमतुर्भदो। १-लक्षणामूलध्वनिः संहत्य चतुर्विधः । २–अभिधामूलध्वनिः ( विवक्षितान्यपरवाच्यः ); विविधः१-असलक्ष्यक्रमव्यङ्गयः ( रसमावादिरूपः)। २-संलक्ष्यक्रमव्यङ्गपश्चेति । १-असंलक्ष्यक्रमव्यङ्गपःषविष:१. पदगतः, २. पदांऽशगतः, ३. वाक्यगतः, ४. महावाक्यमतः, ५. वर्णवतः . ६. रचनागतश्चेति । . . २-संलक्ष्यक्रमण्यङ्गपः त्रिविधः१. शब्दशक्तिमूलः, २. अर्यशक्तिमूल, ३. उभयक्तिमूलन। १-शब्दशक्तिमूलो द्विविधः-वस्तुरूपः, अलङ्काररूपश्च । स प पवाक्य गतत्वेन चतुर्विधः। २-अर्थशक्तिमूलः द्वादविषः, स प पदवाक्यप्रवन्धगतत्वेन विविधः ३६ प्रकाराः। ३-उभयशक्तिमूलः एकविधः ( वाक्यगतः) अभिधामूलध्वनो संलक्ष्यकमव्यङ्गयस्य १५ भेदाः इत्यं च संलक्ष्यकमव्यङ्ग अर्थशक्तिमूलाऽनुरणनव्यम्यस्य ३६ भेदाः । उभयक्तिमूलः एकविधः, शब्दशक्तिमूलस्य पत्वारो भेदाः। इत्थं च संलक्ष्यक्रमव्यङ्गयध्वनेः ४१ भेदाः। ध्वनिभेदका सामान्य दिग्दर्शन किया जाता है । सामान्यतः ध्वनिके दो भेद होते हैं अविवक्षितवाच्य (लक्षणामूल ) और विवक्षिताऽन्यपरवाच्य (बभिधामूल)। लसणामूल ध्वनिके दो भेद होते हैं-अर्यान्तरसंक्रमितवाच्य और अत्यन्ततिरस्कृतवाच्य । पदगत और वाक्यगत होनेसे लक्षणामूल ध्वनिके कुल चार भेद होते हैं । विवक्षिताऽन्यपरवाच्य ( अभिधामूल ) ध्वनिके दो भेद होते हैं संलक्ष्यक्रमव्यङ्गय और असंलक्ष्यक्रमङ्गय । रस, माव आदि असंलक्ष्यक्रमव्यङ्गघमें अन्तर्भूत होते हैं । पद, पदांश, वाक्य, वर्ण, रचना और प्रबन्ध इनसे असंलक्ष्यक्रमध्यङ्गयके छः भेद होते हैं। - संलक्ष्यक्रमव्यङ्गय ध्वनिके तीन भेद हैं । शब्दशक्तिमूल, अर्थशक्तिमूल और अलङ्काररूप । पदगत और वाक्यगत होनेसे शब्दशक्तिमूलके चार भेद होते हैं। अर्थशक्तिमूल संलक्ष्यक्रमव्यङ्गयके बारह भेद हैं । पदगत, वाक्यगत और प्रबन्धगत होनेसे अर्थशक्तिमूल संलक्ष्यक्रमव्यङ्गय ध्वनिके छत्तीस भेद होते हैं । इसप्रकार शब्दशक्तिमूलके पार भेद, अर्थशक्तिमूलके छत्तीस भेद और केवल वाक्यमें रहनेवाले
SR No.023456
Book TitleSahityadarpanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma Negmi
PublisherKrushnadas Academy
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy