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( ४० ) इनके सिवाय साहित्यदर्पणमें इन्होंने अपने नामसे कितने ही पद्योंका उद्धरण दिया है, ये किन किन ग्रन्थोंके हैं, यह विदित नहीं है।
पद्यपि अलङ्कारशास्त्रपर रचित ग्रन्थ अत्यधिक हैं, उनमें भी प्राचीनताकी दृष्टिसे भामहका काव्याऽलङ्कार, दण्डीका काव्यादर्श, मानन्दवर्धनका ध्वन्यालोक, मम्मटभट्टका काव्यप्रकाश एवं नवीन और प्रोढिको दृष्टिसे रसगङ्गाधर और अलङ्कारकोस्तुभ आदि अनेक ग्रन्थ विद्वानोंसे बहुचर्चित है तथाऽपि साहित्य के प्रमेय अंशकी प्रचुरतामें इससे टक्कर लेने वाला कोई भी ग्रन्थ नहीं है । यह सत्य है कि काय. प्रकाश आदिके समान इसमें अतिशय पाण्डिल्य और दुरूहना नहीं है, परन्तु ध्वनिस्थापन करनेमें और व्यञ्जनाके प्रतिस्पर्धी अनुमानके खण्डनमें इनका पाण्डित्य किस विद्वानको चमत्कृत नहीं करेगा? साहित्यदर्पणमें दश्य और अव्य काव्यपर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है, कि बहुना केवल रूपकका निरूपक दशरूपेकसे भी अधिक इसमें प्रमेयोंका वर्णन है । इन सब कारणोंसे अलंकार ग्रन्थों में इसका अत्यधिक प्रनार है और बङ्गदेशमें तो इसीका बोलबाला है। साहित्यदर्पणपर विश्वनाथ कविराजके पुत्र अनन्तदासकी लोचा टीका बहुत प्रौढ है, इसमें विषमस्थलोंपर पर्याप्त प्रकाश डाला गया हैं । ई० १७०१ में निर्मित रामचरण तर्कवागीशकी विवृति, उसी तरह तर्काऽलकार महेश्वर भट्टाचार्यकी विज्ञप्रिया प्रचलित टीकार है । भ० म० हरिदम सिद्धान्तवागीशकी कुसुमप्रतिमा टीका बहुत प्रौढ और सर्वाङ्गपूर्ण है, इसमें स्थानस्थानपर विवति टीका खण्डन है । जीवानन्द विद्यासागरको विमला टीका भी ग्रन्थ लगानेवाली है । नवीन टीकाओं में आचार्य कृष्णमोहन ठबकुरको टीका विस्तृत और प्रचलित हैं । इसी तरह हिन्दीमें मी शालग्रामशास्त्रीकी टीका बहुन प्रसिद्ध और प्रचलित हैं। _ साहित्यदर्पणमें दश परिच्छेद हैं। प्रथम परिच्छेदमें मङ्गलाचरण, काव्यका प्रयोजन, मम्मट भट्टके काव्यलक्षणका खण्डन और स्वमतका स्थापन हैं । द्वितीय वाक्य और पद, आभिधा, आदि शब्दकी तीन उत्तियों का सविस्तर लक्षणपूर्वर निरूपण है। काव्यप्रकाशमें लक्षणाके छः भेद हैं, चन्द्रालोकमें बहुत ही सूक्ष्मता से लक्षणाके प्रचुर भेद पणित हैं, परन्तु साहित्यदर्पणमें ८० भेदोंका चमत्कार पूर्ण निरूपण है । तृतीय में रस, भाव और उनसे सम्बद्ध विषय, नायकले ४८. और नायिकाके ३८४ भेद, नायकके सहाय, दूतभेद, नायक और नायिकाके गुण और अलंकार आदि विषयों का सविस्तर निरूपण है। चतुर्थमे काव्यके भेद, ध्वनियोंके ५१ भेद, और उनके संसृष्टि और सङ्करसे कुल ५३५५ भेदोंका निरूपण है । काव्यप्रकाश के अनुसार ध्वनिके कुल १०१४४ भेद हैं। इसी प्रकार इसमें गुणीभूत व्यलयके ८ भेदोंका निरूपण- कर मम्मटसम्मत चित्रकाव्यका खण्डन किया गया है । पञ्चपमें व्यञ्जनाविरोधीके मतका खण्डन कर ५ कारिकाओंसे व्यञ्जनावृत्तिका स्थापन