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( १९ ) प्रतापगद्रीय की दक्षिणमें बड़ी प्रसिद्धि है। इसमें भी कारिका, वृत्ति और उदाहरण हैं। उदाहरण पतापरुद्र के प्रशंसापरक हैं । इस ग्रन्थमें ५ प्रकरण हैं, जिनमें क्रमसे नायक, काव्य, नाटक, रस, दोष, गुण, शब्दाऽलङ्कार अर्थाऽलङ्कार और शब्दार्थालङ्कार वणित हैं । नाटक प्रकरणमें "प्रतापरुद्रकल्याण" नाटकके उदाहरण दिये गये हैं । इस ग्रन्यका उपजीव्य काव्यप्रकाश और अलङ्कारसर्वस्त्र है। इसपर मल्लिनायके पुत्र कुमारस्वामीकी "रत्नार्पण" नामकी टीका है।
"रत्नशाण" नामकी एक अधूरी टीका भी उपलब्ध है, जिसमें "रत्नापण" का उल्लेख है।
२१ काव्यानुशासन, कर्ता-वाग्भट, समय-ई. १४ शताब्दी । काव्यानुणागनके कर्ता द्वितीय वाग्मट हैं । यह ग्रन्थ म्वके रूप में है, इसकी “अलङ्कार. ति" नामकी सविस्तर वृत्ति अन्धकारने स्वयम् लिखी है। इसमें पांच अध्याय हैं। उदाहरण अन्य ग्रन्थों लिये गये हैं। प्रथम अध्यायमें काव्यका प्रयोजन, हेनु ( प्रतिभा उसका सहारक व्युतानि और अभ्यास ) कविसमय, काव्यलक्षण, काव्यके भेद-गद्य, रय गौर मिश्र, महाकाव्य, आख्यायिका, कथा, चम्पू, मिश्र काव्य ( दशरूपक और गे: लक्षण संनिविष्ट हैं । द्वितीयमें पद और वाक्यके १६ दोष, अर्बके १४ मेष, दण्डी बार वामनसे निरूपित १० गुण आदि विषयों का निरूपण है । वाग्भटके सिद्धातमें माधुर्य, ओज और प्रसाद ये ३ ही गुण हैं । इसमें वैदर्भी, गोडी और पाञ्चाली रीतिका भी वर्णन है । तृतीयमें ६३ अर्यालङ्कार हैं । चतुर्थ में चित्र, श्लेष, शब्दाsलङ्कार और इनके भेदोंका विवेचन है। पञ्चममें रस और विभाव आदि भाव, नायकनायिका भेद और रसदोषोंका निरूपण है। ये जैन थे। इन्होंने ऋषभदेवचरित महाकाव्य और इन्दोऽनुशासन नामके गायोंकी रचना की थी ऐसा प्रतीत होता है । __२१ साहित्यदर्पण, कर्ता-विश्वनाथ कविराज, समय-ई० १४ शताब्दी। विश्वनाथ कविराज उस्कलदेशवासी वैष्णव ब्राह्मण थे। ये १८ भाषाओंके जानकार थे। इनके पिता चन्द्रशेखर भी १४ भाषाओंके जानकार थे। पिता और पुत्र दोनों ही कलिङ्गनरेशसे 'सन्धिविग्रहिक महारान" उपाधिसे विभूषित थे। विश्वनाथ कविराजके प्रपितामहका नाम "नारायण" था, ये भी बड़े विद्वान् थे तथा उन्होंने भी अलङ्कारशास्त्रपर अन्य लिखा था । साहित्यदर्पणके अतिरिक्त इनके कुछ अन्योंके नाम नीचे दिये जाते हैं
प्रभावतीपरिणय (नाटक)।२ चन्द्रकला (नाटिका ) ३ राधवविलास ( महाकाव्य ) ४ नरसिंहविजय (खण्डकाव्य)। ५ कसवध (काव्य )। ६ कुव. लयाश्वचरित (प्राकृतकाव्य)। ७ प्रशस्ति रत्नावली (सोलह भ षाओंसे निर्मित वरम्भक)। ८ काव्यप्रशिदर्पण ( काव्यप्रकाशटीका)।